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________________ ६४४ भगवती सूत्र-श. ३ उ. २ इन्द्र की ऊर्ध्वादि गति का नीचे जाने का काल बराबर है," इस कथन से यह निश्चित होता है कि शक्रेन्द्र जितना नीचा क्षेत्र दो समय में जाता है, उतना ही क्षेत्र ऊंचा एक समय में जाता है अर्थात् नीचे के क्षेत्र की अपेक्षा ऊपर का क्षेत्र दुगुना है । तिर्छा क्षेत्र, ऊर्ध्व क्षेत्र और अधःक्षेत्र के बीच में हैं, इसलिए उसका परिमाण भी बीच का होना चाहिए । इसलिए तिर्छ क्षेत्र का परिमाण डेढ़ योजन निश्चित किया गया है । चूर्णिकार ने भी यही बात कही है;- . ___ "एगणं समएणं उवयइ अहे णं जोयणं, एगेणेव समएणं तिरियं दिवढं गच्छइ, उड्ढं दो जोयणाणि सक्को।" । अर्थ-शकेन्द्र एक समय में नीचे एक योजन जाता है, तिर्छा डेढ़ योजन जाता है, और ऊपर दो योजन जाता है। चमरेन्द्र एक समय में सब से थोड़ा क्षेत्र ऊपर जाता है, क्योंकि ऊपर जाने में उसकी गति मन्द होती है । कल्पना कीजिये-एक समय में वह त्रिभाग न्यन तीन गाऊ (कोस) ऊपर जाता है । तिी उसकी गति शीघ्रतर होती है, इसलिए एक समय में वह तिर्छा त्रिभागद्वयन्यून छह गाऊ होती है । और एक समय में नीचे आठ कोस की (दो योजन) होती है। शंका-सूत्र में तो सिर्फ संख्यात भाग लिखा, परन्तु कोई नियमित परिमाण नहीं बतलाया गया है, तो यहाँ जो क्षेत्र की परिमितता बतलाई गई है, वह कैसे ? समाधान-शकेन्द्र की ऊर्ध्वगति और चमरेन्द्र की अधोगति बराबर (तुल्य) बतलाई गई है। शकेन्द्र एक समय में ऊपर दो योजन जाता है, तो चमरेन्द्र का अधोगमन एक समय में दो योजन बतलाना उचित ही है । तथा शक्रेन्द्र एक समय में जितना क्षेत्र ऊपर जाता है, उतना क्षेत्र ऊपर जाने में वज्र को दो समय और चमरेन्द्र को तीन समय लगते हैं । इस कथन से यह जाना जा सकता है कि शक्रेन्द्र का जितना ऊर्ध्वगति क्षेत्र है, उसका त्रिभाग जितना ऊर्ध्वगति क्षेत्र चमरेन्द्र का है । इसीलिए विभाग न्यून तीन गाऊ यह नियत ऊर्ध्वगति क्षेत्र बतलाया गया है। ऊर्ध्वक्षेत्र और अधःक्षेत्र के बीच का तिर्यग्क्षेत्र है, इसलिए उसका प्रमाण त्रिभाग द्वय न्यून छह गाऊ बतलाया गया है । और अधोगति क्षेत्र दो योजन बतलाया गया है। वज्र, एक समय में नीचे सब से थोड़ा क्षेत्र जाता है, क्योंकि नीचे जाने में उसकी मन्द शक्ति है (कल्पनानुसार-वज्र का अधोगमन क्षेत्र, त्रिभाग न्यून योजन होता है । वह वज तिर्छा विशेषाधिक दो भाग जाता है, क्योंकि तिर्छा जाने में उसकी गति शीघ्रतर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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