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भगवती सूत्र - श. ३ उ. २ चमरेन्द्र का उत्पात
की इच्छा करनेवाला कुलक्षणी ही श्री परिवर्जित अर्थात् लज्जा और शोभा से रहित, हीन पूर्ण (अपूर्ण) चतुर्दशी का जन्मा हुआ यह कौन है ? मुझे यह दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देवकान्ति और दिव्य देवप्रभाव मिला है, प्राप्त हुआ है, सम्मुख आया है, ऐसा होते हुए भी मेरे सिर पर बिना किसी हिचकिचाहट के विव्य भोग भोगता हुआ विचरता है। ऐसा विचार कर चमरेन्द्र ने सामानिक सभा में उत्पन्न हुए देवों को बुला कर इस प्रकार कहा कि हे देवानुप्रियों ! यह अप्रार्थित प्रार्थक ( मरण का इच्छुक ) यावत् भोग भोगने वाला कौन है ?
चमरेन्द्र का प्रश्न सुनकर हृष्टतुष्ट बने हुए उन सामानिक देवों ने दोनों हाथ जोड़ कर शिरसावर्तपूर्वक मस्तक पर अञ्जलि करके चमरेन्द्र को जय विजय शब्दों से बधाया । फिर वे इस प्रकार बोले कि - हे देवानुप्रिय ! यह देवेन्द्र देवराज शक्र यावत् भोग भोगता है ।
विवेचन - वह पूरण तापस मृत्यु पाकर चमरेन्द्र के रूप में उत्पन्न हुआ और उसने स्वभाव से ही अपने अवधिज्ञान से ऊपर देखा, तो अपने ऊपर शक्रेन्द्र दिव्य-भोग भोगता हुआ दिखाई दिया । मूलपाठ में शक्रेन्द्र के लिए जो विशेषण रूप शब्द दिये हैं, उसका अर्थ इस प्रकार है - 'मघवा' - महामेघ जिसके वश में हों उसे 'मघवा' कहते हैं । 'पाकशासन''पाक' नाम के बलवान् शत्रु को शिक्षा देनेवाला अर्थात् उसको परास्त करनेवाला । 'शतऋतु' - शक्रेन्द्र के जीव ने कार्तिक के भव में श्रमणोपासक की पांचवीं प्रतिमा का एक
बार आचरण किया था, इसलिए शक्रेन्द्र को 'शतक्रतु' कहते हैं । यह ( शतक्रतु) विशेषण सभी केन्द्रों के लिए नहीं है । 'सहस्राक्ष' - जिसके हजार आँखें हों उसको 'सहस्राक्ष' कहते हैं । शक्रेन्द्र के पाँच सौ मन्त्री हैं, उनके एक हजार आँखे हैं, वे सब शक्रेन्द्र के काम आती हैं। इसलिए औपचारिक रूप से वे सब आँखें शक्रेन्द्र की कहलाती हैं। इस कारण से शक्रेन्द्र को सहस्राक्ष कहते हैं । 'पुरन्दर' - असुरादि के नगरों का विनाश करने वाला होने से शक्रेन्द्र . को 'पुरन्दर' कहते हैं । वह दक्षिणार्द्ध लोक का स्वामी है । बत्तीस लाख विमानों का अधिपति है । ऐरावण हाथी उसका वाहन हैं। वह सुरेन्द्र अर्थात् सुरों का इन्द्र है । वह रज रहित एवं आकाश के समान निर्मल वस्त्रों को पहनने वाला है । मस्तक पर माला युक्त मुकुट को धारण करने वाला है। कानों में नवीन, सुन्दर, विचित्र और चंचल स्वर्णकुण्डलों को 'पहनने से जिसके कपोलभाग ( गाल) चमक रहे हैं। इस प्रकार के शक्रेन्द्र को अपने ऊपर
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