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________________ भगवती सूत्र-श. ३ उ २. चमरेन्द्र का उत्पात ६२५ दिव्य भोग भोगते हुए चमरेन्द्र ने देखा । देख कर वह अत्यन्त कुपित हुआ और उसने कहा कि यह अप्रार्थित प्रार्थक अर्थात् अनिष्ट वस्तु की प्रार्थना करने वाला-मरण का इच्छुक दुरन्तपन्तलक्षण अर्थात् खराब लक्षणों वाला, होनपुण्यचतुर्दशी का जन्मा हुआ कौन है ? ___ हीनपुण्यचतुर्दशी का जन्मा हुआ' का आशय यह है-जन्म के लिए चतुर्दशी (चौदस) तिथि पवित्र मानी गई है । अत्यन्त पुण्यवान् पुरुष के जन्म के समय ही पूर्ण चतुर्दशी होती है, किन्तु हीन चतुर्दशी (अपूर्ण चतुर्दशी) नहीं होती है । चमरेन्द्र ने शक्रेन्द्र के लिए यह विशेषण देकर अपना आक्रोश. प्रकट किया है। तएणं से चमरे असुरिंदे असुरराया तेसिं सामाणियपरिसोववण्णगाणं देवाणं अंतिए एयमटुं सोचा, णिसम्म आसुरुत्ते, रुटे, कुविए, चंडिकिए, मिसिमिसेमाणे ते सामाणियपरिसोववण्णगे देवे एवं वयासी'अण्णे खलु भो ! से सक्के; देविंदे देवराया; अण्णे खलु भो ! से चमरे असुरिंदे असुरराया, महिड्डीए खलु भो ! से सक्के देविंदे देवराया, अप्पिड्ढीए खलु भो ! से चमरे असुरिंदे असुरराया; तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! सक्कं देविंदं देवरायं सयमेव अचासाइत्तए त्ति कटु उसिणे, उसिणभूए जाए यावि होत्था । तएणं से चमरे असुरिंदे, असुरराया ओहिं पउंजइ, पउंजित्ता ममं ओहिणा आभोएइ, आभोएत्ता इमेयारूवे अज्झथिए जाव-समुप्पजित्था-एवं खलु समणे भगवं महावीरे जंबूदीवे दीवे भारहे वासे, सुंसुमारपुरे णयरे असोगवणसंडे उजाणे, असोगवरपायवस्स अहे पुढविसिलावट्टयंसि अट्ठमभतं पगिण्हिचा एगराइयं महापडिमं उवसंपजित्ता णं. विहरइ, तं सेयं खलु मे समणं भगवं महावीरं णीसाए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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