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________________ भगवती सूत्र - श. १ उ. १ नारकों के भेद चमादि सूत्र कर्म के फल को भोगना 'वेदना' हैं। जिस समय कर्मफल का भोग आरंभ होता है और जिस समय तक भोगना जारी रहता है वह सब काल 'वेदना काल' कहलाता है । कर्मों का एक देश से क्षय होना 'निर्जरा' है। जिस कर्म का फल भोग लिया जाता है वह कर्म क्षीण हो जाता है। उसका क्षीण हो जाना 'निर्जरा' है । चय, उपचय, उदीरणा, वेदना और निर्जरा, इन सबके विषय में 'परिणमन' के समान ही वक्तव्यता है । 'परिणमन' के समान प्रश्न, उत्तर और भंग समझने चाहिए । सिर्फ इतनी विशेषता है कि- परिणत के स्थान पर 'चित, उपचित, उदीरित, वेदित और निर्जीर्ण' शब्दों का प्रयोग करना चाहिए । ૪૪ भेद चयादि सूत्र ८ प्रश्न - रइयाणं भंते ! कइविहा पोग्गला भिज्जंति ? ८ उत्तर - गोयमा ! कम्मदव्ववग्गणमहिकिच्च दुविहा पोग्गला भिज्जंति, तंजहा - अणू चैव बायरा चेव । ९ प्रश्न - रइयाणं भंते ! कइविहा पोग्गला चिज्जंति ? ९ उत्तर - गोयमा ! आहार दव्ववग्गणमहिकिच्च दुविहा पोग्गला चिज्जंति, तंजहा - अणू चेव बायरा चेव । एवं उवचिज्जंति । १० प्रश्न - रइयाणं भंते ! कड़विहा पोग्गला उदीरेंति ? १० उत्तर - गोयमा ! कम्मदव्ववग्गणमहिकिच्च दुविहे पोग्गले उदीरेंति, तंजहा - अणू चेव बायरा चेव । सेसा वि एवं चैव भाणियव्वा-वेदेति णिज्जरेंति । उव्वट्टिसु उव्वङ्गेति उव्वट्टिस्संति । संकामिंसु, संकामेंति, संकामिस्संति । णिहत्तिंसु णिहत्तेंति णिहत्तिस्संति । णिकायिंसु णिकायिंति णिकायिस्संति । सव्वेसु वि कम्म Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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