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________________ भगवती सूत्र-श. १ उ. १ नारकों के भेद चयादि सूत्र ४५ दव्ववग्गणमहिकिच्च । गाहा भेदिय चिया उवचिया, उदीरिया वेइया य णिजिण्णा। उव्वट्टण संकामण, णिहत्तण णिकायणे तिविहकालो॥ शब्दार्थ-भंते - हे भगवन् ! गैरइयाणं-नरयिकों के द्वारा, कइविहा-कितने प्रकार के, पोग्गला-पुद्गल, भिज्जंति-भेदे जाते हैं ? गोयमा-हे गौतम ! कम्मदव्यवग्गणं-कर्म द्रव्य वर्गणा की, अहिकिच्च-अपेक्षा से, दुविहा-दो प्रकार के, पोग्गला-पुद्गल, मिजंति-भेदे जाते हैं । तंगहा-वे इस प्रकार हैं- अजू-अणु-सूक्ष्म, चेव-और, बायरा-बायरा-बादर-स्थूल। - भंते-हे भगवन् ! गेरइयाणं-नरयिक जीव, कइविहा-कितने प्रकार के, पोगलापुद्गलों का, चिज्जंति-चय करते हैं ? गोयमा-हे गौतम ! आहार दव्ववग्गणं-आहार द्रव्य वर्गणा की, अहिकिच्च-अपेक्षा से, दुविहा-दो प्रकार के, पोग्गला-पुद्गलों का, चिजंति-चय करते हैं । तंजहावे इस प्रकार हैं, अणू-अणु-सूक्ष्म, चेव-और, बायरा बादर-स्थूल, एवं-इस तरह से दो प्रकार के पुद्गलों का, उवचिजंति-उपचय भी करते हैं। भंते-हे भगवन् ! णेरइयाणं-नैरयिक जीव, काविहा-कितने प्रकार के पोग्गला-पुद्गलों की, उदीरेंति - उदीरणा करते हैं ? . गोयमा-हे गौतम ! कम्मदव्यवग्गणं-कर्म द्रव्य वर्गणा की, अहिकिच्च-अपेक्षा .से, दुविहे-दो प्रकार के, पोग्गले-पुद्गलों की, उदीरेंति-उदीरणा करते हैं । तंजहावे इस प्रकार हैं-अणू-अणु, चेव-और, बायरा-बादर । । ____सेसा वि-शेष पद भी, एवं चेव- इसी प्रकार, भाणियव्या-कहने चाहिये, बेतिवेदते हैं, णिज्जरेंति-निर्जरा करते हैं। उर्टिसु-उद्वर्तना अपवर्तना की, उन्वर्टेतिउद्वर्तना अपवर्तना करते हैं। उव्वट्टिस्संति-उद्वर्तना अपवर्तना करेंगे । संकामिसु-संक्रमण किया, संकाति- संक्रमण करते हैं, संकामिस्संति-संक्रमण करेंगे। णिहत्तिसु-निधत्त किया णिहत्तेति-निधत्त करते हैं, णिहत्तिस्संति-निधत्त करेंगे । णिकायिसु-निकाचित किया, णिकायिति-निकाचित करते हैं, किायिस्संति-निकाचित करेंगे। सम्वेसु वि-इन सब पदों में भी, कम्मदब्बवग्गण-कर्म द्रव्य वर्गणा की, अहिकिच्च-अपेक्षा से अणु और बादर पुद् Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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