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________________ भगवती सूत्र-श. १ उ. १ नारक जीवों का वर्णन ४३ जिसका उत्तर यह दिया गया है कि जिन पुद्गलों का आहार नहीं किया गया वे परिणत नहीं हुए, किन्तु जिन पुद्गलों का आहार किया जायगा वे पुद्गल भविष्य में परिणत होंगे। इसी प्रश्न के अन्तर्गत चौथे विकल्प में यह पूछा गया है कि जिन पुद्गलों का भूतकाल में आहार नहीं किया गया है और आगे भी आहार नहीं किया जायगा, क्या वे पुद्गल शरीर रूप में परिणत हुए हैं ? इसका उत्तर यह है कि-ऐसे पुद्गल परिणत नहीं हुए और नहीं होंगे, जिनका ग्रहण ही नहीं हुआ उनका शरीर रूप में परिणमन भी नहीं होगा। पहले जो वेसठ भंग बतलाये गये हैं, उन सबका समाधान इसी आधार पर समझ लेना चाहिए। . आहार किये हुए पुद्गल जब शरीर के भीतर गये तो उनका चय. उपचय भी अवश्य होगा। इसीलिए गौतम स्वामी ने प्रश्न किया है कि जीव ने जिन पुद्गलों का आहार किया, क्या वे पुद्गल चय को प्राप्त हुए ? इस तरह परिणमन के सम्बन्ध में जितने और जैसे प्रश्न किये गये हैं, वे सब प्रश्न चय के सम्बन्ध में भी समझ लेने चाहिए । इन सब प्रश्नों का उत्तर भी परिणमन सम्बन्धी उत्तरों के समान ही समझ लेना चाहिए । जो पुद्गल आहार रूप से ग्रहण किये गये हैं उनका शरीर में एकमेक होकर शरीर को पुष्ट करना चय कहलाता है । चय के भी परिणमन की तरह चार विकल्प (भंग) हैं। इन चारों विकल्पों का उत्तर परिणमन की तरह ही है। परिणमन और चय में भेद है। पहले परिणमन होता है और उसके बाद चय होता है । इसलिए परिणमन और चय ये दोनों पृथक् पृथक् हैं। . चय के पश्चात् उपचय का कथन है । जो चय किया गया उसमें और और पुद्गल इकट्ठे कर देना उपचय कहलाता है । जैसे ईंट पर ईंट चुनी गई यह सामान्य चुनाई कहलाई और फिर उस पर मिट्टी या चूना आदि का लेप किया गया, यह विशेष चुनाई हुई । इसी प्रकार सामान्य रूप से शरीर का पुष्ट होना चय कहलाता है और विशेष रूप से पुष्ट होना उपचय कहलाता है। ' कर्म पुद्गलों का स्वाभाविक रूप से उदय में न आकर, करण विशेष के द्वारा उदय में आना 'उदीरणा'+ कहलाता है अर्थात् प्रयोग के द्वारा कर्म का उदय में आना ‘उदीरणा' है। - + 'जं करणेणाकड्डिय उदए दिज्जड उदीरणा एसा' . (कम्मपयडि चूर्णि) अर्थ-करण विशेष के द्वारा चकर पोकर्म उदक में लाया जाता है वह 'उदीरणा' कहलाती है। - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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