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________________ भगवती सूत्र-श. १ उ. १ नारक जीवों का वर्णन . आहृत या आहारित कहते हैं। संग्रह करना और खाना दोनों ही आहार हैं। 'पुद्गल' शब्द को यहाँ 'पुद्गलस्कन्ध' समझना चाहिए, परमाणु नहीं । 'परिणत' शब्द का अर्थ है-शरीर के साथ एकमेक होकर शरीर रूप में हो जाना । आहार का परिणाम है-शरीर बनना । जो आहार शरीर के साथ एकमेक होकर शरीर रूप बन जाता है वह आहार परिणत हुआ या परिणाम को प्राप्त हुआ कहलाता है। . ____इन चार प्रश्नों के ६३ भंग (भांगे) होते हैं । असंयोगी (एक एक पद से बोले जाने वाले) छह भंग हैं--(१) आहृत (२) आहरियमाण (३) · आहरिष्यमाण (४) अनाहत (५) अनाहरियमाण (६) अनाहरिष्यमाण । इन छह पदों के वेसठ भंग होते हैं। प्रत्येक भंग में एक एक प्रश्न उत्पन्न होता है । अतएव वेसठ भंगों के वेसठ प्रश्न हो जाते हैं-द्विसंयोगी पन्द्रह भंग होते हैं । जैसे कि (१) आहृत आहरियमाण (२) आहृत आहरिष्यमाण (३) आहृत अनाहत (४) आहृत अनाहरियमाण (५) आहृत अनाहरिष्यमाण (६) आरियमाण आहरिष्यमाण (७) आहरियमाण अनाहत (८) आहरियमाम अनाहरियमाण (९) आहरियमाण अनाहरिष्यमाण (१०) आहरिष्यमाण अनाहृत (११) आहरिष्यमाण अनाहरियमाण.(१२) आहरिष्यमाण अनाहरिष्यमाण (१३) अनाहृत अनाट्रियमाण (१४) अनाहृत अनाहरिष्यमाण (१५) अनारयमाण अनाहरिष्यमाण । इस प्रकार विसंयोगी (दो दो पदों को मिलाने से) पन्द्रह भंग होते हैं । त्रिसंयोगी बीस भंग होते हैं । चतुस्संयोगी पन्द्रह भंग होते हैं। पञ्चसंयोगी छह भंग होते हैं । छह . संयोगी एक भंग होता है । इस प्रकार कुल वेसठ भंग होते हैं। उपर्युक्त प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने फरमाया कि-हे गौतम ! जिन पुद्गलों का भूतकाल में आहार किया है वे भूतकाल में ही शरीर रूप में परिणत हो चुके हैं। ग्रहण करने के पश्चात् परिणमन होता है । अतएव पूर्वकाल में आहार किये हुए पुद्गल पूर्व काल में ही परिणत हो गये। ____ इसी प्रश्न के अन्तर्गत दूसरे विकल्प (प्रश्न) में भूतकाल के साथ वर्तमान काल सम्बन्धी प्रश्न किया गया है । उसके उत्तर में भगवान् ने फरमाया कि जिन पुद्गलों का आहार हो चुका, वे पुद्गल शरीर रूप से परिणत हो चुके और जिन पुद्गलों का आहार हो रहा है वे परिणत हो रहे हैं। इसी प्रश्न के अन्तर्गत तीसरे विकल्प में भविष्यकाल सम्बन्धी प्रश्न किया गया है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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