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भगवती सूत्र-श. २ उ. ८ चमरचंचा राजधानी
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५१ उत्तर-हे गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मध्य में रहे हुए मन्दर (मेरु) पर्वत से दक्षिण दिशा में तिर्छ असंख्यात द्वीप और समुद्रों को उल्लंघन करने के बाद अरुणवर नाम का द्वीप आता है। उस द्वीप की वेदिका के बाहरी किनारे से आगे बढ़ने पर अरुणोदय नाम का समुद्र आता है । इस अरुणोदय समुद्र में बयालीस हजार योजन जाने के बाद उस जगह असुरकुमारों के इन्द्र, असुरकुमारों के राजा चमर का तिगिच्छ कूट नामक उत्पात पर्वत आता है। उसकी ऊंचाई १७२१ योजन है, उसका उद्वेध (जमीन में गहराई) ४३० योजन और एक कोस है। इस पर्वत का नाप गोस्तुम नाम के आवास पर्वत के नाप की तरह जानना चाहिए । विशेषता यह है कि गोस्तुभ पर्वतं के ऊपर के भाग का जो नाप है वह नाप यहाँ बीच के भाग का समझना चाहिए। अर्थात् तिगिच्छक कट पर्वत का विष्कम्भ मल में १०२२ योजन है। बीच का विष्कम्भ ४२४ योजन है और ऊपर का विष्कम्भ ७२३ योजन है। उसका परिक्षेप मूल में ३२३२ योजन से कुछ विशेषोन है। बीच का परिक्षेप १३४१ योजन से कुछ विशेषोन है। ऊपर का परिक्षेप २२८६ योजन तथा कुछ विशेषाधिक है । वह मूल में विस्तृत है, बीच में संकड़ा है और ऊपर फिर विस्तृत है। उसके बीच का भाग उत्तम वन जैसा है, बड़े मुकुन्द के आकार जैसा है। वह पर्वत सम्पूर्ण रत्नमय है, सुन्दर है यावत् प्रतिरूप है। वह पर्वत पद्मवर वेविका से और एक वनखण्ड से चारों तरफ से घिरा हुआ है। (यहाँ वेदिका और वनखण्ड का वर्णन करना चाहिए)। ।
विवेचन-पहले उद्देशक में देवों के स्थानों के सम्बन्ध में वर्णन किया गया है । इस उद्देशक में चमरचञ्चा नामक देवस्थान (राजधानी) का वर्णन किया गया है।
- सब द्वीपों के बीच में स्थित जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत से दक्षिण की तरह तिर्छा असंख्यात द्वीप समुद्रों को उल्लंघन करने के बाद अरुणवर नामक द्वीप आता है। उसकी वेदिका के बाहरी भाग से आगे जाने पर अरुणोदय समुद्र आता है । उस अरुणोदय समुद्र में बयालीस हजार योजन जाने पर असुरेन्द्र असुरराज चमर का तिगिच्छकूट नामक उत्पात पर्वत आता है।
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