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________________ भगवती सूत्र-श. २ उ. ८ चमरचंचा राजधानी रण्णो तिगिच्छकूडे नाम उप्पायपव्वर पण्णत्ते, सत्तरसएकवीसे जोयणसए उड्ढे उच्चत्तेणं, चत्तारितीसे जोयणसए कोसं च उव्वेहेणं, गोथुभस्स आवासपव्वयस्स पमाणेणं नेयव्वं, नवरं-उवरिल्लं पमाणं मझे भाणियव्वं जाव (मूले दलबावीते जोयणसए विक्खंभेणं, मझे चत्तारि चउवीसे जोयणसए विक्खंभेणं उवरि सत्ततेवीसे जोयणसए विक्खंभेणं, मूले तिण्णि जोयणसहस्साई, दोण्णि य बत्तीसुत्तरे जोयणसए किंचि विसेसूणे परिक्खेवेणं, मज्झे एगं जोयणसहस्सं तिण्णि य इगयाले जोयणसए किंचि विसेसूणे परिवखेवेणं, उवरि दोण्णि य जोयणसहस्साई, दोण्णि य छलसीए जोयणसए किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं) मूले वित्थडे, मज्झे संखित्ते, उप्पिं विसाले, मज्झे वरवइरविग्गहिए, महामउंदसंठाणसंठिए, सव्वरयणानए अच्छे जाव-पडिरूवे, से णं एगाए परमवरवेइयाए, एगेणं वणसंडेण य सवओ समंता संपरिक्खित्ते । पउमवरवेइयाए, वणसंडस्स य वण्णओ। विशेष शब्दों के अर्थ-रण्णो-राजा, वोइवत्ता-उल्लंघन करके, ओगाहिता-अवगाहन, करके, विक्खंभेणं-विष्कम्भ, परिक्खेवेणं-परिक्षेप = घेरा, उड्ढं उच्चत्तेणं-ऊपर की तरफ की ऊंचाई, विसेसूणे-विशेष कम, विसेसाहिए-विशेषाधिक, वित्थडे-विस्तृत, संखितेसंक्षिप्त, उप्पि विसाले-ऊपर से विशाल, वरवइरविग्गहिए-उत्तम वज्र जैसे आकारवाला, महामउंदसंठाणसंठिए-बड़े मुकुन्द (एक प्रकार का वादिन्त्र) की तरह। . . भावार्थ-५१ प्रश्न-हे भगवन् ! असुरकुमारों के इन्द्र, असुरकुमारों के राजा चमर को सुधर्मा-सभा कहाँ पर है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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