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________________ ४९२ भगवती सूत्र-श. २ उ. ५ श्रमण सेवा का फल ४२ प्रश्न-से णं भंते ! संजमे किंफले ? ४२ उत्तर-अणण्हयफले। ४३ प्रश्न-एवं अणण्हये ? ४३ उत्तर-तवफले ? ४४ प्रश्न-तवे ? ४४ उत्तर-वोदाणफले। ४५ प्रश्न-से णं भंते ! वोदाणे किंफले ? ४५ उत्तर-(वोदाणे) अकिरियाफले । . ४६ प्रश्न-से णं भंते ! अकिरिया किंफला ? ४६ उत्तर-सिद्धिपजवसाणफला पण्णत्ता गोयमा ! गहाः-सवणे णाणे य विण्णाणे, पञ्चक्खाणे य संजमे । अणण्हये तवे चेव, बोदाणे अकिरिया सिद्धी । विशेष शब्दों के अर्थ-तहारूवं-यथारूप = जैसा रूप अर्थात् वेश है, उसी के अनुकूल गुणों वाले, पज्जुवासमाणस्स-सेवा करने वाला, सिद्धिपज्जवसाणफला-जिसका अन्तिम फल सिद्धि = मोक्ष है। ___ भावार्थ-३७ प्रश्न-गौतमस्वामी पूछते हैं कि-हे भगवन् ! तथारूप के श्रमण या माहण की पर्युपासना करने वाले मनुष्य को उसकी पर्युपासना (सेवा) का क्या फल मिलता है ? ३७ उत्तर-हे गौतम ! तथारूप के श्रमण या माहण की पर्युपासना करने वाले को उसकी पर्युपासना का फल श्रवण है अर्थात् उसको सत्शास्त्र सुनने रूप फल मिलता हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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