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________________ भगवती सूत्र-श. २ उ. ५ श्रमण सेवा का फल अभिमान के वश नहीं कही है। हे गौतम ! मैं भी इस प्रकार कहता हूँ, भाषण करता हूँ, बतलाता हूँ, प्ररूपणा करता हूँ कि-पूर्व तप, पूर्व संयम, कर्मिपन और संगीपन, इन कारणों से देवता देवलोकों में उत्पन्न होते हैं। इसलिए उन स्थविर भगवन्तों ने यथार्थ कहा है । यह बात सत्य है, इसलिए उन्होंने कही है, किन्तु अपने अभिमान के कारण नहीं कही हैं। विवेचन-उन स्थविर भगवन्तों ने श्रमणोपासकों को जो उत्तर दिया उसकी पुष्टि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने कर दी । भगवान् ने फरमाया कि उन स्थविर भगवन्तों ने जो उत्तर उन श्रमणोपासकों को दिया वह यथार्थ है, सत्य है । सत्य होने के कारण ही उन स्थविरों ने ऐसा कहा है, किन्तु अपनी बड़ाई एवं अभिमान के कारण नहीं कहा है । . ३७ प्रश्न-तहारूवं णं भंते ! समणं वा माहणं वा पज्जुवासमाणस्स किंफला पज्जुवासणा ? ३७ उत्तर-गोयमा ! सवणफला । ३८ प्रश्न-से णं भंते ! सवणे किंफले ? . . ३८ उत्तर-णाणफले। ३९ प्रश्न-से णं भंते ! णाणे किंफले ? ३९ उत्तर-विण्णाणफले। ४० प्रश्न-से णं भंते ! विण्णाणे किंफले ? ४० उत्तर-पञ्चक्खाणफले। ४१ प्रश्न-से णं भंते ! पचक्खाणे किंफले ? ४१ उत्तर-संजमफले। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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