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भगवती सूत्र-श. २ उ. ५ श्रमण सेवा का फल
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३८ प्रश्न-हे भगवन् ! श्रवण का क्या फल है ? ___३८ उत्तर-हे गौतम ! श्रवण का फल ज्ञान है अर्थात् सुनने से ज्ञान होता है।
३९ प्रश्न-हे भगवन् ! ज्ञान का क्या फल है ?
३९ उत्तर-हे गौतम ! ज्ञान का फल विज्ञान है अर्थात् साधारण ज्ञान होने पर विशेषज्ञान होता है।
४० प्रश्न-हे भगवन् ! विज्ञान का क्या फल है ?
४० उत्तर-हे गौतम ! विज्ञान का फल प्रत्याख्यान है अर्थात् विशेष ज्ञान होने पर हेय पदार्थों का प्रत्याख्यान होता है। __ ४१ प्रश्न-हे भगवन् ! प्रत्याख्यान का क्या फल है ?
४१ उत्तर हे गौतम ! प्रत्याख्यान का फल संयम है अर्थात् प्रत्याख्यान होने पर सर्वसावद्य त्याग रूप संयम प्राप्त होता है।
४२ प्रश्न-हे भगवन् ! संयम का क्या फल है ?
४२ उत्तर-हे गौतम ! संयम का फल अनाश्रवपन है अर्थात् संयम प्राप्त होने पर फिर नवीन कर्मों का बन्ध नहीं होता है।
४३ प्रश्न-हे भगवन् ! अनाश्रवपन का क्या फल है ? ४३ उत्तर-हे गौतम अनाश्रवपन का फल तप है।
४४ प्रश्न-हे भगवत् ! तप का क्या फल है ? -- ४४ उत्तर-हे गौतम ! तप का फल व्यवदान है अर्थात् कर्मों को काटना है.एवं कर्म मैल को साफ करना है।
४५ प्रश्न-हे भगवन् ! व्यवदान का क्या फल है ? ४५ उत्तर-हे गौतम ! व्यवदान का फल अक्रियपन (निष्क्रियपन) है। ४६ प्रश्न-हे भगवन् ! अक्रियपन (निष्क्रियपन) का क्या फल है?
४६ उत्तर-हे गौतम ! अक्रियपन का फल सिद्धि है अर्थात अक्रियपन प्राप्त होने पर अन्त में सिद्धि (मोक्ष) प्राप्त होती है। ..
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