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________________ ४२४ भगवती सूत्र - श २ उ. १ आर्य स्कन्दक - गुणरत्न संवत्सर तप हैं, गुणरयणं संच्छरं तवोकम्मं गुणरत्न संवत्सर नामक तप । भावार्थ - इसके बाद श्रमण भगवान् महावीर स्वामी कृतंगला नगरी के छत्रपलाशक उद्यान से निकले और बाहर जनपद (देश) में विवरण करने लगे । इसके बाद स्कन्दक अनगार ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के तथा रूप के. स्थविरों के पास सामायिकादि ग्यारह अंगों को सीखा, सीख कर भगवान् के पास आकर वन्दना नमस्कार करके इस प्रकार बोले कि यदि आपकी आज्ञा हो, तो मैं मासिकी भिक्षुप्रतिमा को धारण करना चाहता हूँ । भगवान् ने फरमाया कि- 'हे देवानुप्रिय ! जिस तरह तुम्हें सुख हो वैसा करो, किन्तु विलम्ब मत करो' । भगवान् की आज्ञा प्राप्त कर स्कन्दक मुनि बडे हर्षित हुए यावत् भगवान् को वन्दना नमस्कार करके मासिकी भिक्षुप्रतिमा को अंगीकार की । इसके पश्चात् स्कन्दक मुनि ने मासिकी भिक्षुप्रतिमा को सूत्र के अनुसार, आचार के अनुसार, मार्ग के अनुसार, यथा तत्त्व और अच्छी तरह काया से स्पर्श किया, पालन किया, शोभित किया, समाप्त किया, पूर्ण किया, कीर्तन किया, अनुपालन किया, आज्ञापूर्वक आराधन किया, यावत् काया से सम्यक प्रकार से स्पर्श करके यावत् आराधन करके श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास आये और वन्दना नमस्कार करके इस प्रकार बोले कि - 'हे भगवन्! आपकी आज्ञा हो, तो में द्विमासिकी भिक्षुप्रतिमा अंगीकार करना चाहता हूँ' । भगवान् ने फरमाया कि- 'हे देवानुप्रिय ! जैसे सुख हो वैसे करो, किन्तु विलम्बं मत करो। फिर स्कन्दक मुनि ने द्विमासिकी भिक्षुप्रतिमा को अंगीकार कर यावत् पूर्ण किया । इसी तरह त्रिमासिकी, चतुर्मासिकी, पंचमासिकी, छहमासिकी, सप्तमासिकी, प्रथम सात दिन रात की, द्वितीय सात दिन रात की, तृतीय सात दित रात की, अहोरात्रिकी, एक रात्रि की इस प्रकार बारह भिक्षुप्रतिमाओं का यथाविधि पालन किया । इनका यथाविधि पालन करके श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास आकर वन्दना नमस्कार करके इस प्रकार बोले कि हे भगवन् ! आपकी आज्ञा हो, तो में 'गुणरत्नसंवत्सर' नामक तप करना चाहता हूँ । भगवान् ने फरमाया कि- हे देवानुप्रिय ! जैसे तुम्हें सुख हो वैसे करो, किन्तु विलम्ब मत करो । Jain Education International - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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