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________________ भगवती सूत्र-श. २ उ. १ आर्य स्कन्दक का प्रतिमा आराधन ४२३ सित्ता मासियं भिक्खुपडिमं उपसंपजि ताणं विहरइ । तए णं से खदए अणगारे मासियं भिक्खुपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातचं अहासम्मं कारण फासेइ पालेइ सोभेइ तीरेइ पूरेह किट्टेइ अणुपालेह, आणाए आराहेइ, सम्मं काएग फासित्ता जावआराहेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छड़, उवागच्छित्ता समणं भगवं जाव-नमंसित्ता एवं क्यासीः-इच्चमि णं भंते ! तुन्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे दोमासियं भिक्खुपडिमं उवसंपजित्ता णं विहरित्तए, अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध, तं चेव । एवं तेमासियं, चाउम्मासियं, पंचमासियं, छम्मासियं, सत्तमासियं, पढमं सत्तराईदियं, दोच्चं सत्तराइंदियं, तच्चं सत्तराईदियं, अहोराइंदियं, एगराइयं । तए णं से खंदए अणगारे एगराइयं मिम्खुपडिमं अहासुत्ते, जाव-आराहेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता समणं भगवं महावीरं जाव-नमंसित्ता एवं वयासीः-इच्छामि णं भंते ! तुम्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे गुणरयणसंवच्छरं तवोकम्मं उवसंपजित्ता णं विहरित्तए, अहासुई देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं । . विशेष शब्दों के अर्थ-पडिनिक्खमइ-बाहर निकले, अग्मगुग्णाए-आज्ञा होने पर, उवसंपज्जित्ताण-स्वीकार करके, अहासुतं-सूत्र के अनुसार, अहाकप्पं-कल्प अर्थात् आचार के अनुसार, अहामग्ग-मार्ग के अनुसार, अहातच्चं-यथा तत्त्व, अहासम्म-समभाव पूर्वक, सोमेइ-सुशोभित करते हैं, तोरेइ-पार लगाते हैं, पूरेइ-पूर्ण करते हैं, किट्टेह-कीर्तन करते Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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