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भगवती सूत्र-श. २ उ. १ आयं स्कन्दक का प्रतिमा आराधन.
विवेचन-स्कन्दक मुनि भगवान् की शिक्षा के अनुसार पांच समिति, तीन गुप्ति में सावधानता पूर्वक प्रवृत्ति करने लगे। वे इन्द्रियों को वश में रखने वाले, गुप्तब्रह्मचारी. अर्थात् गुप्तिपूर्वक ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले त्यागी, लज्जावान्, (संयमवान्-सरल) धर्मस्वरूप अथवा धन्य, (धर्म रूप धनवाले) शक्ति होते हुए भी क्षमा करने वाले, इन्द्रियों के विकार से रहित अतएव जितेन्द्रिय, व्रतों का निर्दोष पालन करने वाले अथवा सौहृद अर्थात् सब प्राणियों में मित्रता की बुद्धि रखनेवाले, इहलोक और परलोक सम्बन्धी किसी प्रकार का निदान (नियाणा)न करनेवाले, धीर, संयम से बाहर चित्तवृत्ति न रखनेवाले, साधुवृत्ति में तल्लीन, दान्त अर्थात् क्रोधादिः शत्रुओं का दमन करनेवाले अथवा रागद्वेष का अन्त करने के लिए प्रवृत्ति करने वाले बने। जिस प्रकार मार्ग का अनजान पुरुष, मार्ग के जानकार पुरुष को आगे रखकर उसके पीछे पीछे चलता है, उसी प्रकार स्कन्दक मुनि, निर्ग्रन्थ प्रवचनों को आगे रखकर अर्थात् भगवान् की आज्ञा के अनुसार संयम की समस्त क्रियाएं करने लगे।
तए णं समणे भगवं महावीरे कयंगलाओ चयरीओ, छत्तपलासयाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ। तए. णं से खंदए अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अतिए सामाइयमाझ्याई. एकारस अंगाई अहिजइ, अहिजित्ता जेणेव समणे.भगवं महावीरे तेणेव. उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ, नमंसह; वंदित्ता नमंसित्ता, एवं वयासीः-इच्छामि गं भंते ! तुम्भेहिं अन्भगुण्णाए समाणे मासियं भिक्खुपडिमं उपसंपजित्ता णं विहरित्तए, अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं । तए णं से खदए अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अभणुण्णाए समाणे हटे, जाव-नमं
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