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________________ . भगवती सूत्र - श. १ उ. १ चलमाणे चलिए प्रश्न जैसे वस्त्र के विषय में तन्तु के लिए कहा गया है वैसा ही 'समय' की अपेक्षा भी जान लेना चाहिए | समय के स्थूलरूप से तीन विभाग किये जा सकते हैं - प्रारंभकाल, मध्यकाल और अन्तिमकाल । जैसे प्रारंभकाल में एक तन्तु डालने से कपडा उत्पन्न हुआ, उसी प्रकार मध्यकाल में और अन्तिम काल में भी उत्पन्न हुआ है । तात्पर्य यह है कि जैसे एक तन्तु डालने से वस्त्र की उत्पत्ति मानना युक्तिसंगत है, उसी प्रकार कर्मों की उदयावलिका असंख्यात समय की होने से पहले समय में जो कर्म दलिक उदयावलिका में आने के लिए चले हैं, उनकी अपेक्षा उन्हें चला कहा जाता है । यदि ऐसा न माना जायगा तो जो कर्म दलिक उदयावलिका में आने के लिए चले हैं • 'उant 'aoafter' निरर्थक हो जायगी और यदि प्रथम समय में कर्मों का चलना नहीं माना जायगा, तो फिर दूसरे तीसरे आदि समयों में भी उनका चलना नहीं माना जा सकेगा। क्योंकि पहले समय में और पिछले समय में कोई अन्तर नहीं है । जैसे पहले समय में कुछ ही कर्मदलिक चलते हैं, सब नहीं, उसी प्रकार अन्तिम समय में भी कुछ ही कदलिक चलते हैं, सब नहीं । क्योंकि बहुत से कर्मदलिक तो पहले ही चल चुके हैं और, जो थोडे से बाकी बचे हैं वे ही अन्तिम समय में चलते हैं। इस प्रकार सब समय समान हैं, किसी में कोई विशेषता नहीं हैं । अतः प्रथम समय में यदि 'कर्मचले' ऐसा न माना जाय, तो फिर किसी भी समय में उनका चलना न माना जा सकेगा। इसलिए जिस प्रकार अन्तिम समय में 'कर्मचले' ऐसा माना जाता है, उसी प्रकार प्रथम समय में भी 'कमंचले ' ऐसा मानना चाहिए । कर्मों की स्थिति परिमित है, चाहे वह अन्तर्मुहूर्त की हो या सत्तर कोटाकोड़ी सागरोपम की हो, लेकिन है परिमित ही । परिमित स्थिति वाले कर्म यदि उदय में नहीं आवेंगे, तो उनका परिमितपना मिट जायगा और सारी व्यवस्था भंग हो जायगी । कर्म स्थिति की मर्यादा हैं और उस मर्यादा के अनुसार कर्म उदयावलिका में आते ही हैं । उदयावलिका में आने के लिए सभी कर्म एक साथ नहीं चलते हैं । प्रत्येक समय में उनका कुछ अंश ही चलता है । प्रथम समय में जो कर्माश चला है यदि उसकी अपेक्षा कर्म को 'चला' न माना जायगा तो प्रथम समय की क्रिया और वह समय व्यर्थ हो जायगा । अतः 'चलमान' कर्म को 'चलित' मानना ही उचित है। जो कर्मदल प्रारम्भ में उदयावलिका के लिए 'चला' हैं, वह बाद में फिर नहीं चलता है । अतएव 'इस समय यह कर्मासे चला है. और इस समय यह कर्माश चला है' ऐसा मानने से ही कर्मों के चलने का क्रम रह सकता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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