________________
३९८
भगवती सूत्र - श. २ उ. १ आर्य स्कन्दक
पगरखी, पादुका (खडाऊँ), इन तापस के उपकरणों को लेकर परिव्राजकों के मठ से निकला । निकल कर त्रिदण्ड, कुण्डी, रुद्राक्ष की माला, करोटिका, भृशिका ( आसन विशेष) केशरिका, त्रिगडी, अंकुश, अंगूठी और गणेत्रिका इनको हाथ मैं लेकर छत्र और पगरखी से युक्त होकर तथा गेरुए वस्त्र पहन कर श्रावस्ती नगरी के मध्य में होकर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास जाने के लिए कृतंगला नगरी के छत्रपलाशक उद्यान की तरफ रवाना हुआ ।
विवेचन – स्कन्दकजी के मन में उन प्रश्नों के उत्तर जानने की जिज्ञासा बस रही थी। जब उन्होंने सुना कि भ० महावीर स्वामी कृतंगला नगरी के बाहर बिराज रहे हैं, तो वे बहुत प्रसन्न हुए । जनता के मुंह से भगवान् की प्रशंसा सुनकर उनके मन में भगवान् के प्रति भक्ति उत्पन्न हुई। उन्हें विश्वास हो गया कि मेरी जिज्ञासा की तृप्ति भगवान् महावीर से ही होगी। वे भगवान् के समीप पहुंचने के लिए कृतसंकल्प हुए और अपने आये । वहां से अपने उपकरण लेकर भगवान् के निकट पहुंचने लिए रवाना
आश्रम
हुए ।
'गोयमा' ! इति समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी : - दच्छिसि णं गोयमा ! पुव्वसंगइयं । कं णं भंते ! ? खदयं नाम । से काहे वा, कहं वा, केवच्चिरेण वा ? एवं खलु गोयमा ! ते णं काले णं, ते णं समए णं सावत्थी नामं नगरी होत्था । वष्णओ । तत्थ णं सावत्थीए नयरीए गद्दभालस्स अंतेवासी खंद नामं कच्चायणस्सगोत्ते परिव्वायर परिवसइ । तं चेव, जाव - जेणेव ममं अंतिए, तेणेव पहारेत्थ गमणाए । से अदूरागते, बहुसंपत्ते, अद्वाणपडिवण्णे, अंतरा पहे वट्टह । अज्जेव णं दच्छिसि गोयमा ! 'भंते !' त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदह, नर्मसह,
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org