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________________ भगवती सूत्र-श. २ उ. १ आर्य स्कन्दक ३९७ सिंघाडग-सिंघाड़े के आकार वाला, जहाँ तीन मार्ग मिलते हों, जणसंमद्देजनसम्मर्द-मनुष्यों का झुण्ड, जणवूहे-जनव्यूह-मनुष्यों का व्यूह रूप में एकत्रित होना, अंतिए-समीप, सोच्चा-सुनकर, निसम्म-हृदय में धारण कर, एयाब्वे-इस प्रकार, अन्मथिए - आध्यात्मिक, चितिए-स्मरण हुआ, पत्थिए-अभिलाषा हुई, मणोगए-मन में हुआ, संकप्पे-संकल्प, समुप्पज्जित्था उत्पन्न हुआ, सेयं-श्रेय-कल्याणरूप, तिवंडंत्रिदण्ड, कुंडियं-कुण्डी, कंचणियं-काञ्चनिका-रुद्राक्ष की माला, करोडियं-करोटिका एक प्रकार का मिट्टी का बर्तन, मिसियं-भृशिका-एक प्रकार का आसन, केसरियंकेशरिका बर्तनों को पोंछने के लिए वस्त्र का टुकड़ा, छण्णालयं-षट्नालक-त्रिकाष्ठिकात्रिगड़ी, अंकुसयं-अंकुश = वृक्षों पर से पत्ते गिराने का एक प्रकार का साधन, पवितयंपवित्रक = अंगुठी, गणेत्तियं-गणेत्रिका = हाथ की कलाई पर बांधने का एक आभरण विशेष, छत्तयं-छत्र, वाहणाउ-जूते, पाउयाओ-पादुका = खड़ाऊँ, धाउरत्ताओधातुरक्त = शाटिका, पहारेत्थ गमणाए-आने का विचार किया है, हव्वं-शीघ्र। भावार्थ-उस समय श्रावस्ती नगरी में जहाँ तीन मार्ग, चार मार्ग और बहुत मार्ग मिलते हैं, वहां लोग परस्पर इस प्रकार बातें करते हैं कि श्रमण .. भगवान महावीर स्वामी कृतांगला नगरी के बाहर छत्रपलाश उद्यान में पधारे हैं। लोग, भगवान को वन्दना करने के लिए जाने लगे। बहुत-से लोगों के मुंह से भगवान् महावीर स्वामी के आगमन की बात सुन कर कात्यायन गोत्री उस स्कन्दक तापस के मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि श्रमण भगवन् महावीर स्मामी कृतांगला नगरी के बाहर छत्रपलाशक नामक उद्यान में तप संयम से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरते हैं। इसलिए मैं उनके पास जाऊँ, उन्हें वन्दना नमस्कार करूं, सत्कार सन्मान दूं, कल्याणरूप, मंगलरूप, देवरूप, और चैत्यरूप भगवान् महावीर स्वामी की पर्युपासना करूँ, यह सब करके मैं उनसे अर्थ, हेतु, प्रश्न, कारण, व्याकरण आदि पूर्छ ? यह मेरे लिए कल्याणकारी है । ऐसा विचार कर स्कन्दक तापस जहां परिवाजकों का मठ है वहाँ आया। वहां आकर त्रिदण्ड, कुण्डी, रुद्राक्ष की माल, करोटिका (एक प्रकार का मिट्टी का बर्तन), आसन, केशरिका (बर्तनों को साफ करने के लिए कपड़ा), त्रिगडी, अंकुशक, अंगूठी, गणेत्रिका, छत्र, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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