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________________ । भगवती सूत्र-श. २ उ. १ आर्य स्कन्दक ३९९ वंदित्ता, नमंसित्ता एवं वयासीः-पहू णं भंते ! खदए कचायणस्सगोत्ते देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता णं, अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए ? हंता, पभू । जावं च णं समणे भगवं महावीरे भगवओ गोयमस्स एयमढे परिकहेइ, तावं च णं से खंदए कचायणस्सगोते. तं देसं हवं आगए। . विशेष शब्दों के अर्थ-वच्छिसि-देखेगा, पुश्वसंगइयं-पूर्व का सम्बन्धी, केवच्चिरेण- . कुछ काल के बाद, अदूरागते-निकट आया, बहुसंपत्ते-अति निकट आया, अडाणपडिवण्णेमार्ग पर चलता हुआ, अंतरापहे-अन्तर पथ, वट्टइ-वर्त रहा है। भावार्थ-इधर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अपने ज्येष्ठ शिष्य श्री इन्द्रभूति अणगार से इस प्रकार कहा कि-हे.गौतम ! आज तू अपने पूर्व के साथी को देखेगा। तब गौतम स्वामी ने पूछा कि-हे भगवन् ! मैं आज अपने किस पूर्व साथी को देखूगा ? तब भगवान् ने फरमाया कि-हे गौतम ! तू आज अपने 'स्कन्दक परिवाजक' को देखेगा। तब गौतम स्वामी ने पूछा-हे भगवन् ! मैं उसे कब, किस तरह से और कितने समय बाद देखूगा? भगवान् ने फरमाया कि-हे गौतम ! उस काल उस समय में श्रावस्ती नगरी थी। वहां. गर्दभाली का शिष्य कात्यायन गोत्री स्कन्दक नाम का परिव्राजक रहता था। इसका पूरा विवरण पहले के अनुसार जान लेना चाहिये । यावत् वह अपने स्थान से रवाना होकर मेरे पास आ रहा है । बहुत-सा मार्ग पार कर निकट पहुंच गया है। मार्ग में चल रहा है। हे गौतम ! तू आज ही उसे देखेगा। फिर गौतम स्वामी ने वन्दना नमस्कार करके पूछा कि-हे भगवन् ! क्या स्कन्दक आपके पास दीक्षा लेगा? भगवान् ने फरमाया कि हां, गौतम ! वह मेरे पास दीक्षा लेगा। जब श्रमण भगवान महावीर स्वामी गौतम स्वामी से इस प्रकार कह ही रहे थे कि इतने में कात्यायन गौत्री स्कन्दक परिव्राजक उस प्रदेश में आया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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