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________________ ३८० भगवती सूत्र-श. २ उ. १ जीवों का श्वासोच्छ्वास ४ प्रश्न-हे भगवन् ! ये पृथ्वीकायादि एकेन्द्रिय जीव, किस प्रकार के द्रव्यों को बाह्य और आभ्यन्तर श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करते और छोड़ते हैं ? ४ उत्तर-हे गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा अनन्त प्रदेश वाले द्रव्यों को, क्षेत्र की अपेक्षा असंख्य प्रदेशों में रहे हुए द्रव्यों को, काल की अपेक्षा किसी भी स्थिति वाले द्रव्यों को और भाव की अपेक्षा-वर्ण. वाले, गन्ध वाले, रस वाले और स्पर्श वाले द्रव्यों को बाह्य और आभ्यन्तर श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करते और छोड़ते हैं। ५ प्रश्न-हे भगवन् ! वे पृथ्वीकायादि एकेन्द्रिय जीव, भाव की अपेक्षा वर्ण वाले द्रव्यों को बाह्य और आभ्यन्तर श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करते है और छोड़ते हैं, तो क्या वे द्रव्य, एक वर्ण वाले हैं ? ५ उत्तर-हे गौतम ! जैसा कि-पण्णवणा सूत्र के अट्ठाईसवें आहारपद में कथन किया हैं वैसा ही यहां कहना चाहिए। यावत् वे पांच विशाओं की ओर से श्वासोच्छ्वास के पुद्गलों को ग्रहण करते हैं। ' ६ प्रश्न-हे भगवन् ! नरयिक किस प्रकार के पुद्गलों को बाह्य और आभ्यन्तर श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करते हैं और छोड़ते हैं ? ६ उत्तर-हे गौतम ! इस विषय में पहले कहा, वैसा ही समझना चाहिए यावत् वे नियमा (नियम से-निश्चित रूप से) छह विशा के पुद्गलों को बाह्य और आभ्यन्तर श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करते और छोड़ते हैं। . ७-जीव सामान्य और एकेन्द्रियों के सम्बन्ध में ऐसा कहना चाहिए कि यदि व्याघात न हो, तो वे सब दिशाओं से बाह्य और आभ्यन्तर श्वासोच्छ्वास के लिए पुद्गलों को लेते हैं। यदि व्याघात हो, तो कदाचित् तीन दिशा से, कदाचित चार दिशा से और कदाचित् पांच दिशा से श्वासोच्छ्वास के पुद्गलों को ग्रहण करते हैं । बाकी सब जीव, नियमा छह दिशा से श्वासोच्छवास के पुद्गलों को लेते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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