SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 400
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र-श. २ उ. १ जीवों का श्वासोच्छ्वास ३८१ विवेचन-पहले शतक का विवेचन पूरा हुआ। अब दूसरे शतक का विवेचन प्रारम्भ किया जाता है । दूसरे शतक के दस.उद्देशक हैं। उनमें से पहले उद्देशक का विवेचन प्रारंभ. किया जाता है। इसका परस्पर सम्बन्ध इस प्रकार है-प्रथम शतक के दसवें उद्देशक के अन्त में जीवों की उत्पत्ति का विरहकाल बतलाया गया था। अब दूसरे शतक के प्रथम उद्देशक में जीवों के श्वासोच्छ्वास के सम्बन्ध में विचार किया गया है। ___ गौतम स्वामी ने प्रश्न किया है कि-हे भगवन् ! पृथ्वीकायादि स्थावर जीवों का चैतन्य, आगम प्रमाण से सिद्ध है, किन्तु उनमें श्वासोच्छ्वास होता है या नहीं ? क्योंकि जैसे मनुष्य पशु आदि का श्वासोच्छ्वास प्रत्यक्ष ज्ञात होता है, उस तरह से पृथ्वीकायादि स्थावर जीवों का श्वासोच्छ्वास प्रत्यक्ष ज्ञात नहीं होता। इस विषय में यदि कोई यह शंका करे कि-जब पृथ्वीकायादि स्थावर जीवों का चैतन्य, आगम से सिद्ध है और यह बात आबालगोपाल प्रसिद्ध है कि-जो जीव होता है वह श्वासोच्छ्वास लेता ही है, तब फिर पृथ्वीकायादि स्थावर जीव श्वासोच्छ्वास लेते हैं या नहीं ? यह गौतम स्वामी का प्रश्न संगत कैसे है ? . इस शंका का समाधान यह है कि-जीव के श्वासोच्छ्वास होता है यह बात यद्यपि जगत् जाहिर है, तथापि मेंढ़क आदि कितनेक जीवित जीवों का शरीर कई बार बहुत काल पर्यन्त श्वासोच्छ्वास रहित दिखाई देता है। इसलिए पृथ्वीकायादि के जीव क्या उस प्रकार के हैं या मनुष्यादि की तरह श्वासोच्छ्वास लेने वाले हैं ? इस प्रकार की शंका होना संगत ही है तया बहुन लम्बे समय में श्वासोच्छ्वास .लेने वाले जीवों को भी किसी काल में श्वासोच्छ्वास लेना ही पड़ता है, वह अपने को प्रत्यक्ष दिखाई देता है, परन्तु पृथ्वीकायादि स्थावर जीवों का श्वासोच्छ्वास हमें कभी दृष्टिगोचर नहीं होता । इसलिए पृथ्वीकायादि स्थावर जीवों के श्वासोच्छ्वास है या नहीं ? यह सन्देह होना स्वाभाविक है । इसलिए गौतम स्वामी ने जो प्रश्न किया, वह सर्वथा सुसंगत है। - गौतम स्वामी के प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने फरमाया कि-है गौतम ! पृथ्वी कायादि स्थावर जीव भी बाह्य और आभ्यन्तर श्वासोच्छ्वास लेते और छोड़ते हैं। पृथ्वीकायादि के जीव श्वासोच्छ्वास रूप में जिन पुद्गलों को ग्रहण करते हैं वे किस प्रकार के होते हैं ? इस प्रश्न के उत्तर के लिए पन्नवणा सूत्र के अट्ठाईसवें आहार पद की साक्षी दी गई है। वहाँ बतलाया गया है कि-वे पुद्गल दो वर्ण वाले, तीन वर्ण वाले यावत् पांच वर्ण वाले होते हैं । वे एक गुण काले यावत् अनन्त गुण काले होते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy