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________________ भगवती सूत्र- - श. २ उ १ जीवों का श्वासोच्छ्वास' ७ - जीव - एगिंदिया वाघाया य णिव्वाघाया य भाणियव्वा । सेसा यिमा छ । विशेष शब्दों के अर्थ - - ऊसास - श्वासोच्छ्वास, खंदए - स्कन्दक, समय क्खित्त समयक्षेत्र, बीयसए - दूसरा शतक होत्था - था, समोसढे - पधारे, पज्जुवा समाणे सेवा करते हुए अणामं पाणामं - आभ्यन्तर श्वासोच्छ्वास, उत्सासं णिस्सास- बाह्य श्वासोच्छ्वास, याणाम- जानते हैं, पासामो-देखते हैं, वाघाय - व्याघात, णिव्वाघाया- निर्व्याघात, णियमानियम से, छद्दिस - छह दिशा । भावार्थ - १ संग्रह गाथा का अर्थ इस प्रकार है- दूसरे शतक में दस उद्देशक हैं । उनमें क्रमशः इस प्रकार विषय हैं - ( १ ) श्वासोच्छ्वास और स्कन्दक अनगार ( २ ) समुद्घात (३) पृथ्वी ( ४ ) इन्द्रियां (५) अन्यतीर्थिक (६) भाषा (७) देव (८) चमरचंचा राजधानी (९) समय क्षेत्र का स्वरूप (१०) अस्तिकाय का विवेचन । ३७९ २-उस काल उस समय में राजगृह नगर था । उसका वर्णन करना • चाहिए। वहाँ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पधारे । उनका धर्मोपदेश सुनने लिए परिषद् निकली । भगवान् ने धर्मोपदेश दिया । धर्मोपदेश सुनकर परिषद् वापिस लौट गई। ३ प्रश्न - उस काल उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के ज्येष्ठ अन्तेवासी इन्द्रभूति अनगार भगवान् की पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोले - हे भगवन् ! ये जो बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, पंचेन्द्रिय जीव हैं, वे जो बाह्य और आभ्यन्तर श्वासोच्छ्वास लेते हैं उनको हम जानते और देखते हैं, किन्तु 'हे भगवन् ! पृथ्वीकाय, अध्कस्य, ते उकाय, वायुकाय और वनस्पतिकाय के आभ्यन्तर और बाह्य श्वासोच्छ्वास को हम नहीं जानते हैं और नहीं देखते हैं। तो क्या भगवन् ! ये पृथ्वीकायादि आभ्यन्तर और बाह्य श्वासोच्छ्वास लेते और छोड़ते हैं ? ३ उत्तर- हाँ, गौतम ! ये पृथ्वीकायादि एकेन्द्रिय जीव मी आभ्यन्तर और बाह्य श्वासोच्छ्वास लेते और छोड़ते हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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