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________________ भगवती सूत्र-श. १ उ. ९ स्थिर अस्थिरादि हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। ऐसा कह कर यावत् गौतम स्वामी विचरते हैं। विवेचन-गौतम स्वामी द्वारा किये हुए 'अथिरे पलोट्टई' इस प्रश्न के दो अर्थ होते है-व्यावहारिक और पारमार्थिक (आध्यात्मिक) । व्यवहार में भी पलट जाने वाला अस्थिर कहलाता है जैसे-मिट्टी का ढेला आदि । ये अस्थिर द्रव्य बदलते हैं । अध्यात्म पक्ष में 'कर्म' अस्थिर हैं, क्योंकि वे प्रति समय जीव-प्रदेशों से चलित होते हैं-अलग होते हैं । कर्म अस्थिर होने से बन्ध, उदय और निर्जीर्ण आदि परिणामों द्वारा वे बदलते रहते हैं। . व्यवहार पक्ष में पत्थर की शिला आदि स्थिर है, इसलिए बदलती नहीं है। अध्यात्म पक्ष में जीव स्थिर है, क्योंकि कर्मों का क्षय कर देने के बाद भी जीव स्थिर रहता है और जीव का उपयोग स्वभाव कभी बदलता नहीं है। व्यवहार पक्ष में तृणादि नष्ट होने के स्वभाव वाले हैं, अतएव वे भग्न हो जाते है। अध्यात्म पक्ष में कर्म अस्थिर हैं, इसलिए वे भग्न (क्षय) हो जाते हैं । व्यवहार पक्ष में लोह की शलाका आदि भग्न नहीं होती। अध्यात्म पक्ष में जीव शाश्वत है, इसलिए वह कभी भग्न नहीं होता, नाश को प्राप्त नहीं होता। जीव का प्रकरण होने से शाश्वत अशाश्वत सम्बन्धी प्रश्न किये गये हैं-व्यवहार पक्ष में छोटे लड़के को 'बालक' कहते हैं और निश्चय नय की अपेक्षा अथवा अध्यात्म पक्ष में 'असंयत' जीव को 'बालक' कहते हैं। जीव द्रव्य रूप होने से शाश्वत है । व्यवहार नय की अपेक्षा बचपन को 'बालकत्व' कहते हैं और निश्चय नय की अपेक्षा एवं अध्यात्म पक्ष में 'असंयतपन' को 'बालकत्व' कहते हैं। यह बालकत्व' पर्याय रूप होने से अशाश्वत है। इसी तरह ‘पण्डित' सम्बन्धी सूत्र के सम्बन्ध में भी कहना चाहिए । व्यवहार नय की अपेक्षा या व्यवहार पक्ष में शास्त्रों के माता जीव को 'पण्डित' कहते हैं । निश्चय नय की अपेक्षा या अध्यात्म पक्ष में संयमी बीपको 'परित कहते हैं। यह जीव द्रव्य होने से शाश्वत हैं। और 'पण्डितपन' जीव की पर्याय होने से बचाश्वत (अस्थिर) है। ' तात्पर्य यह है कि द्रव्य सबकः शाश्वत है, स्थिर है, वह सदा ज्यों का त्यों बना रहता है, किन्तु पर्याय अशाश्वत है, अस्थिर है, वह प्रतिक्षण बदलती रहती है। ॥ प्रथम शतक का नववा उद्देशक समाप्त ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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