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________________ भगवती सूत्र-श. १ उ. ९ स्थिर बस्विरादि . विवेचन–प्रासुक का अर्थ है-अचित्त-निर्जीव । एषणीय का अर्थ है-निर्दोष । गौतम स्वामी ने पूछा कि-हे भगवन् ! जो साधु, बयालीस दोष रहित प्रासुक एषणीय आहार करता है, उसे क्या फल होता है। इस प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने फरमाया कि-हे गौतम ! वह कदाचित् आयु कर्म को बांधता है और कदाचित् नहीं बांधता अर्थात् या तो वह उसी भव में मोक्ष चला जाता है, या कर्म शेष हों, तो सात कर्मों की गाढ़ी बंधी हुई प्रकृतियों को शिथिल करता है । क्योंकि वह अपनी ली हुई प्रतिज्ञा को पूर्ण रूप से निभाता है । वह छहकाय के जीवों के जीवन को चाहता है, वह छहकाय जीवों का रक्षक है । इसलिए वह संसार सागर को पार कर जाता है। स्थिर अस्विरादि प्रकरण ३०७ प्रश्न-से पूर्ण भंते ! अथिरे पलोट्टइ, णो थिरे पलोट्टइ, अथिरे भजइ, णो थिरे भबइ, सासए बालए, बालियत्तं असासयं, सासए पंडिए, पंडियत्तं असासयं ? ३०७ उत्तर-हता, गोयमा ! अथिरे पलोट्टइ, जाव-पंडियत्तं असासर्य। सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति जाव-विहरइ । ॥ नवमो उद्देसो सम्मत्तो॥ विशेष शब्दों के म-पलोट्टा-बदलता है, मज्जा नष्ट होता है । भावार्थ-३०७ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या अस्थिर पदार्थ बदलता है और स्थिर पदार्थ नहीं बदलता है ? क्या अस्थिर पदार्थ भंग होता है और स्थिर पदार्थ भंग नहीं होता है ? क्या बालक शाश्वत है और बालकपन अशाश्वत है ? क्या पण्डित शाश्वत है और पण्डितपन अशाश्वत है ? । ३०७ उत्तर-हाँ, गौतम ! अस्थिर पदार्थ बदलता है यावत् पण्डितपन अशाश्वत है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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