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________________ १८ मतीसूत्र-श. १ गौतम स्वामी जिज्ञासा उप्पण्णसड्ढे उप्पण्णसंसए उप्पण्णकोऊहल्ले संजायसढे संजार संसए संजायकोऊहल्ले समुप्पण्णसढे समुप्पण्णसंसए समुप्पण्णकोऊहल्ले उठाए उठेइ उट्ठाए उद्वित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिखुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ करित्ता वंदइ णमंसइ वंदित्ता णमंसित्ता णच्चासण्णे गाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जुवासमाणे एवं वयासी। शब्दार्थ-तएणं-तब जायसड्डे-जातश्रद्ध-पंदा हुई श्रद्धा वाले जायसंसए-जातसंशय जायकोऊहल्ले-जात कुतूहल उप्पण्णसड्ढे-उत्पन्न श्रद्धावाले उप्पणसंसए-उत्पन्न संशय वाले उप्पण्णकोहल्ले-उत्पन्न कुतूहल वाले संजायसड़े-संजात श्रद्धा वाले संजायसंसएसंजात संशय वाले संजायकोऊहल्ले-संजात कुतूहलवाले समुप्पणसड्ढे-सनुत्पन्न श्रद्धावाले समुप्पण्णसंसए-समुत्पन्न संशय वाले समुप्पण्णकोऊहल्ले-समुत्पन्न कुतूहल वाले से-वे भगवं गोयमे-भगवान् गौतम स्वामी उढाए उठेंह-उत्थान द्वारा खडे हुए उट्ठाए उद्वित्ता-उत्थान द्वारा खडे होकर जेणेव-जहां पर समणे भगवं महावीरे-श्रमण भगवान् महावीर स्वामी है तेणेव-वहाँ पर उवागच्छइ-आये उवागच्छित्ता-आकर समर्ग भगवं महावीरं-श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को तिक्खुत्तो-तीन बार आयाहिणपयाहिण-दक्षिण की तरफ से प्रदक्षिणा की और बंबइ णमंसइ-वंदना नमस्कार किया वंदित्ता णमंसित्ता-वंदना नमस्कार करके पच्चासम्णे-बहुत नजदीक नहीं और गाइडूरे-बहुत दूर भी नहीं किन्तु यथोचित स्थान पर रहकर सुस्सूसमाणे-शुश्रूषा करते हुए भगवान् के वचनों को सुनने की इच्छा करते हुए णमंसमाणे-नमस्कार करते हुए अभिमुहे भगवान् के सन्मुख विणएग-विनयपूर्वक पंजलिउडे-दोनों हाथ जोड़ कर पंज्जुवासमाणे-पर्युपासना करते हुए एवं-इस प्रकार बयासी-बोले। भावार्य-जिनको श्रद्धा, संशय और कुतूहल उत्पन्न हुआ है ऐसे गौतम स्वामी अपने स्थान से उठ कर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास आए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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