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________________ भगवती सूत्र श. १ - गौतम स्वामी की जिज्ञासा इन्द्रभूति अनगार ऐसे उत्तम गुणों के धारक थे । वे ऊर्ध्व जानु ( दोनों घुटनों को ऊँचा रखकर) और अधः शिर ( शिर को किञ्चित् नीचे की तरफ झुकाये हुए) तथा ध्यान कोष्ठोपगत ( जिस प्रकार कोठे में डाला हुआ धान्य इधर उधर नहीं बिखरता है, उसी प्रकार धर्मध्यान और शुक्लध्यान के द्वारा जिनकी अन्तःकरण वृत्ति और इन्द्रियाँ इधर उधर विचलित नहीं होती थीं) होकर संवर रूप संयम और अनशनादि तप द्वारा आत्मा को भावित करते हुए विचरते थे । गौतम स्वामी को जिज्ञासा तणं से भगवं गोयमें जांयसड़ढे जायसंसए जायकोऊहल्ले (१०) विद्यानुप्रवाद पूर्व - इसमें विविध प्रकार की विद्या तथा सिद्धियों का वर्णन है। इसमें एक करोड़ दस लाख पद हैं। (११) अवन्ध्य पूर्व - इसमें ज्ञान, तप, संयम आदि शुभ फल वाले तथा प्रमाद आदि अशुभ फल बाले अवन्ध्य अर्थात् निष्फल न जाने वाले कार्यों का वर्णन है । इसमें छब्बीस करोड़ पद हैं। (१२) प्राणायुत्रवाद पूर्व -- इसमें दस प्राण और आयु आदि का भेद प्रभेद पूर्वक विस्तृत वर्णन है। इसमें एक करोड़ छप्पन लाख पद हैं। १७ (१३) क्रिया विशाल पूर्व - इसमें कायिकी, आधिकरणिकी आदि क्रियाओं का तथा संयम में उपकारक क्रियाओं का वर्णन है। इसमें नौ करोड़ पद हैं। (१४) लोकबिन्दुसार पूर्व — जैसे बिन्दु अक्षर के मस्तक पर होती है, उसी प्रकार श्रुतज्ञान रूप लोक में सर्वाक्षरसन्निपात परिनिष्ठित होने से जो सर्वोत्तम शिरोभूत है, वह लोक बिन्दुसार है । इसमें साढे बारह करोड़ पद हैं। पूर्वो के अध्याय विशेषों को 'वस्तु' कहते हैं और वस्तुओं के अवान्तर अध्यायों को 'चूलिकावस्तु' कहते हैं । I उत्पाद पूर्व में दस वस्तु और चार चूलिकावस्तु हैं अप्रायणीय पूर्व में चौदह वस्तु और बारह. चूलिकावस्तु हैं । वीर्यप्रवाद पूर्व में आठ वस्तु और आठ चूलिकावस्तु हैं। अस्तिनास्तिप्रवाद पूर्व में अठारह वस्तु और दस चूलिकावस्तु हैं । ज्ञानप्रवाद पूर्व में बारह वस्तु हैं । सत्यप्रवाद पूर्व में दो वस्तु हैं। आत्मप्रवाद पूर्व में सोलह वस्तु हैं । कर्मप्रवाद पूर्व में तीस वस्तु हैं । प्रत्याख्यान पूर्व में बीस वस्तु हैं। विद्यानुप्रवाद पूर्व में पन्द्रह बस्तु हैं । अवन्ध्यपूर्व में बारह वस्तु हैं । प्राणायु पूर्व में तेरह वस्तु हैं । क्रियाविशाल पूर्व में तीन वस्तु हैं। लोकबिन्दुसार पूर्व में पच्चीस वस्तु हैं। चौथे से आगे के पूर्वी में चूलिकrवस्तु नहीं है । (नन्दी सूत्र तथा समवायांग सूत्र ) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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