SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 332
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र - श. १ उ. ८ बाल-पण्डितादि का आयुबन्ध पण्डित, अंतकिरिया - अन्तक्रिया = मोक्ष गमन की क्रिया, कप्पोववत्तिया - कल्पोपपत्तिका = वैमानिक देवों में उत्पन्न होने की क्रिया, देस उवरमइ - एक देशतः पाप से निवृत्त होता है । भावार्थ - राजगृह नगर में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी का समवसरण हुआ और यावत् इस प्रकार प्रश्नोंत्तर हुए ३१३ की २५९ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या एकान्त- बाल ( मिथ्यादृष्टि) मनुष्य, नरक आ बाँधता है ? या तिर्यञ्च की आयु बाँधना है ? या मनुष्य की आयुबाँधता है ? या देव को आयु बाँधता है ? क्या नरक की आयु बाँध कर नारकियों में उत्पन्न होता है ? क्या तिर्यञ्चों की आयु बांधकर तिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है ? मनुष्य की आयु बाँध कर मनुष्य में उत्पन्न होता है ? या देव की आयु बांध कर देवलोक में उत्पन्न होता है ? २५९ उत्तर - हे गौतम! एकान्त- बाल मनुष्य, नरक की भी आयु बाँधता है, तिर्यञ्च की भी आयु बांधता है, मनुष्य की भी आयु बांधता है और देव की भी आयु बांधता है। नरकायु बाँध कर नैरयिकों में उत्पन्न होता है । तिर्यञ्चायु बांध कर तिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है । मनुष्यायु बाँध कर मनुष्यों में उत्पन्न होता है और देवायु बाँध कर देवलोक में उत्पन्न होता हैं । . २६० प्रश्न - हे भगवन् ! क्या एकांत-पण्डित मनुष्य, नरकायु बाँधता हे ? यावत् देवायु बाँधता है ? और यावत् देवायु बाँध कर देवलोक में उत्पन्न होता है ? Jain Education International २६० उत्तर - हे गौतम ! एकान्त पण्डित मनुष्य, कदाचित् आयु बांधता है और कदाचित् आयु नहीं बांधता है । यदि आयु बांधता है तो देवायु बांधता है, किन्तु नरकायु, तिर्यञ्चायु और मनुष्यायु नहीं बांधता है । वह नरकायु न बांधने से नैरयिकों में उत्पन्न नहीं होता, इसी प्रकार तिर्यञ्चायु न बांधने से तिर्यञ्चों में उत्पन्न नहीं होता और मनुष्यायु न बंधने से मनुष्यों में भी उत्पन्न नहीं होता, किन्तु देवायु बांध कर देवों में उत्पन्न होता है । २६१ प्रश्न- हे भगवन् ! इसका क्या कारण है कि यावत् देवायु- बांध कर For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy