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________________ ३१४ भगवती सूत्र-श. १ उ. ८ बाल पण्डितादि का आयुबन्ध देवों में उत्पन्न होता है ? २६१ उत्तर-हे गौतम ! एकान्त पण्डित मनुष्य की केवल दो गतियां कही गई हैं। वे इस प्रकार हैं-अन्तक्रिया और कल्पोपपत्तिका । इस कारण हे गौतम ! एकान्त पण्डित मनुष्य देवायु बाँध कर देवों में उत्पन्न होता है। २६२ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या बाल-पण्डित मनुष्य नरकायु बाँधता है यावत् देवायु बांधता है ? और यावत् देवायु बाँध कर देवलोक में उत्पन्न होता हैं ? २६२ उत्तर-हे गौतम ! वह नरकायु नहीं बाँधता और यावत् देवायु बांध कर देवों में उत्पन्न होता है। २६३ प्रश्न-हे भगवन् ! इसका क्या कारण है कि-बाल-पण्डित मनुष्य यावत् देवायु बाँध कर देवों में उत्पन्न होता है ? .. २६३ उत्तर-हे गौतम ! बाल-पण्डित मनुष्य तथारूप के श्रमण या माहन के पास से एक भी धार्मिक आर्य वचन सुनकर, धारण करके एक देश से विरत होता है और एक देश से विरत नहीं होता। एक देश से प्रत्याख्यान करता है और एक देश से प्रत्याख्यान नहीं करता । इसलिए हे गौतम ! देशविरति और देशप्रत्याख्यान के कारण वह नरकायु, तिर्यञ्चायु और मनुष्यायु का बन्ध नहीं करता और यावत् देवायु बाँध कर देवों में उत्पन्न होता है। इसीलिए हे गौतम! पूर्वोक्त कथन किया गया है। विवेचनसातवें उद्देशक में गर्भ और जन्म का अधिकार कहा गया है, किन्तु गर्भ और जन्म, आयुष्य के बन्ध बिना नहीं हो सकते। इसलिए आठवें उद्देशक में आयु का विचार किया जाता है । इसके सिवाय संग्रह गाथा में आठवें उद्देशक में बाल जीवों के वर्णन करने की प्रतिज्ञा की थी। अतएव आयु के साथ बाल जीवों का भी वर्णन किया जाता है। संसार में तीन प्रकार के जीव होते हैं-बालं, पण्डित और बाल पण्डित । मिथ्यादृष्टि और अविरत को 'एकान्त-बाल' कहते हैं । वस्तु तत्त्व के यथार्थ स्वरूप को जान कर तदनुसार आचरण करने वाला 'पण्डित' कहलाता है । जो वस्तु तत्त्व के यथार्थ स्वरूप को जानता है, किन्तु आंशिक (एक देश) आचरण करता है उसे 'बालपण्डित' कहते है। .. मूलपाठ में ‘एगंत बाले-एकान्त बाल' ऐसा कहा है । 'बाल' शब्द के साथ 'एकांत' Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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