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________________ ३१० भगवती सूत्र-श.१ उ. ७ गर्भ के जीव की स्थिति . खराब रस वाला, खराब स्पर्श वाला, अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अशुभ, अमनोज्ञ, अमनाम-अमनोहर, हीन स्वर वाला, दोन स्वर वाला, अनिष्ट स्वर वाला, अकान्त स्वर वाला, अप्रिय स्वर वाला, अशुभ स्वर वाला, अमनोज स्वर बाला, अमनोहर स्वर वाला, अनादेय वचन वाला होता है और यदि उस जीव के कर्म अशुभ रूप में न बंधे हुए हों, तो उसके उपर्युक्त सब बातें प्रशस्त होती हैं यावत् . वह आदेय वचन वाला होता है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। विवेचम-गर्भ में रहा हुआ जीव, उत्तान आसन से भी रहता है, यानी ऊपर की तरफ मुख किये हुए चित सोता है, करवट लेकर भी सोता है, आम्रफल की तरह टेढ़ा होकर भी रहता है, खड़ा रहता है, बैठा रहता है, सोता रहता है. ये सब बातें माता पर आधार रखती है । अर्थात् माता के खड़े रहने,पर खड़ा रहता है, बैठने पर बैठता है, और सोने पर सोता है । तात्पर्य यह है कि माता की क्रिया पर बालक की क्रिया निर्भर है। किसी किसी बालक का प्रसव सिर की तरफ से होता है और किसी का पांव की तरफ से। इस तरह कोई सम होकर जन्मता है और कोई तिर्छा होकर, जब बालक तिर्छा होकर जन्मता है, तब बालक को और माता को असह्य वेदना होती है। उस समय योग्य उपाय करने पर यदि बालक सीधा हो जाय तो ठीक है, अन्यथा बालक और माता दोनों की मुत्यु हो जाने की संभावना रहती हैं । कई बार तो माता की रक्षा के लिए गर्भ के बालक को काट काट कर निकाला जाता है। जिस जीव ने पूर्वभव में शुभ कर्म उपार्जन किये हैं, वह यहां भी शुभ होता है । वह सुरूप होता है, सुवर्ण, सुगन्ध, सुरस और सुस्पर्श वाला होता है । इष्ट, कान्त, प्रिय, शुभ, एवं मनोज्ञ होता है । उसका स्वर भी इष्ट कान्त आदि होता है । वह आदेय वचन वाला होता है। सभी लोग उसके वचन को मान्य करते हैं। जीव ने पूर्वभव में अशुभ कर्म उपार्जन किये हैं, वह कुरूप, कुवर्ण, दुर्गन्ध, दुःरस और दुःस्पर्श वाला होता है । वह अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अशुभ और अमनोज्ञ होता है । वह हीनस्वर वाला, दीनस्वर वाला एवं अनादेय वचन वाला होता है। ___गौतमस्वामी बोले-हे भगवन् ! ऐसा ही है, ऐसा ही है । यह कह कर वे तप संयम में विचरने लगे। ॥ प्रथम शतक का सातवां उद्देशक समाप्त ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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