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________________ भगवती सूत्र-श. १ उ. ७ गर्भ में जीव की स्थिति दीणस्सरे अणिठुस्सरे, अकंतस्सरे, अप्पियस्सरे, असुभस्सरे, अमणुण्णस्सरे, अमणामस्सरे; अणाएजवयणे, पञ्चायाए या वि भवइ । वण्णवज्झाणि य से कम्माइं नो बद्धाई, पसत्थं णेयव् जावआदिजवयणे पञ्चायाए या वि भवइ । सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति । ॥ सत्तमो उद्देसो सम्मत्तो॥ विशेष शब्दों के अर्थ-उत्ताणए-उत्तानक-चित लेटा हुआ, पासिल्लए-पसवाड़े से, अंबखुज्जए-आम्रकुब्ज-आम की तरह कुबड़ा, अच्छेज्ज-सामान्य अवस्था में रहा हुआ, चिठेज्ज-खड़ा हुआ, णिसीएज्ज-बैठा हुआ, तुयट्टेज्ज-सोता हुआ, पसवणकालसमयंसिप्रसव के समय, विणिहायं-विनिधात-मृत्यु, वण्णवमाणि-श्लाघा रहित-अशुभ, णिहत्ताईनिधत्त, पच्चायाए-उत्पन्न हुआ, आदिज्जवयणे-आदेय वचन वाला। 'भावार्थ-२५८ प्रश्न-हे भगवन् ! गर्भ में रहा हुआ जीव, क्या उत्तानक -चित लेटा हुआ होता है ? या करवट वाला होता है ? आम के समान कुबड़ा होता है ? खड़ा होता है ? बैठा होता है, या पड़ा हुआ-सोता हुआ होता है ? तथा जब माता सोती हुई हो वह भी सोता है ? जब माता जागती हो तो जागता है, माता के सुखी होने पर सुखी होता है और माता के दुःखी होने पर दुःखी होता है ? . २५८ उत्तर-हाँ, गौतम ! गर्भ में रहा हुआ जीव यावत् जब माता दुःखी हो, तो दुःखी होता है । यदि वह गर्भ का जीव मस्तक द्वारा या पैरों द्वारा बाहर आवे तब तो ठीक तरह आता है । यदि टेढा (आड़ा) हो कर आवे, तो मर जाता है। यदि उस जीव के कर्म अशुभ रूप में बंधे हों, स्पृष्ट हों, निधत्त हों, कृत हों, प्रस्थापित हों, अभिनिविष्ट हों, अभिसमन्वागत हों, उदीर्ण हों और उपशांत न हों, तो वह जीव कुरूप, कुवर्ण (खराब वर्णवाला), खराब गन्ध वाला Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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