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________________ ३०८ भगवती सूत्र-श. १ उ. ७ गर्भ में जीव की स्थिति मूल पाठ में श्रमण माहन के लिए 'तथा रूप' यह विशेषण लगाया है । इसका मतलब यह है कि-'शास्त्रोक्त गुणसम्पन्न' । अर्थात् शास्त्र में 'श्रमण माहन' के जो गुण कहे हैं उन गुणों को तथा तदनुरूप वेश को धारण करने वाले महात्मा 'तथा रूप' के श्रमण माहन कहलाते हैं । जो समभाव में लीन रहते हैं एवं शत्रु मित्र पर समभाव रखते हैं तथा निरन्तर तप में लीन रहते हैं, उन्हें 'श्रमण' कहते हैं । ‘मा हन' अर्थात् 'मत मार' जो ऐसा उपदेश देता है अर्थात् जो स्वयं स्थूल हिंसा नहीं करता और दूसरों को भी हिंसा से निवृत्त होने का उपदेश देता है, वह 'माहन' कहलाता है । 'ब्राह्मण' को भी 'माहन' कहते हैं । अर्थात् देशतः ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले ब्रह्मचारी को और देश विरत-श्रमणोपासक को भी 'माहन' कहते हैं। गर्भ में जीव की स्थिति २५८ प्रश्न-जीवे णं भंते ! गभगए समाणे उत्ताणए वा, पासिल्लए वा, अंबखुजए वा; अच्छेज वा, चिटेज वा, निसीएज वा, तुयट्टेज वा, माउए सुयमाणीए सुवइ, जागरमाणीए जागरइ, सुहियाए सुहिए भवइ, दुहियाए दुहिए भवइ ? ___२५८ उत्तर-हंता गोयमा ! जीवे णं गभगए समाणे जावदुहियाए दुहिए भवइ, अहे णं पसवणकालसमयंसि सीसेण वा, पाएहिं वा आगच्छ, सम्मं आगच्छइ, तिरियं आगच्छइ, विणिहायं आवजइ, वण्णवज्झाणि य से कम्माइं बद्धाइं पुट्ठाई, निहताई, कडाई, पट्टवियाई, अभिनिविट्ठाई अभिसमन्नागयाइं, उदिनाई, नो उवसंताई भवंति, तओ भवइ दुरूवे, 'दुवन्ने दुग्गंधे, दुरसे, दुफासे, अणिटे, अकंते, अप्पिए, असुभे; अमणुण्णे, अमणामे; हीणस्सरे; Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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