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________________ भगवती सूत्र--श. १ उ. ६ जीव पुद्गल सम्बन्ध २८१ ____२२७ उत्तर-गोयमा ! से जहाणामए हरदे सिया, पुण्णे, पुण्णप्पमाणे; वोलट्टमाणे, वोसट्टमाणे, समभरघडताए चिट्ठइ । अहे णं केइ पुरिसे तंसि हरदसि एगं महं नावं सयासवं, सयछिदं ओगा. हेज्जा । से पूर्ण गोयमा ! सा णावा तेहिं आसवदारेहिं आपूरमाणी, आपूरमाणी पुण्णा, पुण्णप्पमाणा, वोलट्टमाणा, वोसट्टमाणा, समभरघडताए चिट्ठइ ? हंता, चिट्ठइ । से तेणटेणं गोयमा ! अस्थि णं जीवा य जाव-चिटुंति । विशेष शब्दों के अर्थ-अण्णमण्णबढा-परस्पर बद्ध, अण्णमण्णपुट्ठा-परस्पर स्पृष्ट, अण्णमण्णमोगाढा-परस्पर एक दूसरे में मिले हुए, अण्णमण्णसिणेहपडिबद्धा-परस्पर स्नेह =चिकनाई से प्रतिबद्ध, अण्णमण्णघत्ताए-परस्पर घटित होकर, हरदे तालाब, वोलट्टमाणेपानी से भरा हुआ, वोसट्टमाणे-पानी से लबालब भरा हुआ, सयासर्व-शताश्रव = सौ छेदों वाली। भावार्थ-२२६ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या जीव और पुद्गल परस्पर संबद्ध हैं ? परस्पर गाढ संबद्ध हैं ? परस्पर एक दूसरे में मिले हुए हैं ? परस्पर स्नेह (चिकनाई) से प्रतिबद्ध हैं ? और परस्पर घटित होकर रहे हुए हैं ? २२६ उत्तर-हाँ, गौतम ! रहे हुए हैं। २२७ प्रश्न-हे भगवन् ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि-यावत् जीव और पुदगल इस प्रकार रहे हए हैं ? . २२७ उत्तर-हे गौतम ! जैसे कोई एक तालाब है। वह पानी से भरा हुआ है, पानी से लबालब भरा हुआ है, पानी से छलक रहा है, पानी से बढ़ रहा है, और वह पानी से भरे हुए घडे के समान परिपूर्ण है । उस तालाब में कोई पुरुष एक ऐसी बडी नाव, जिसमें सौ छोटे छेद हों और सौ बडे छेद हों उसे डाल दे तो, हे गौतम! वह नाव, छेदों द्वारा पानी से भरती हुई, खूब भरती हुई, छलकती हुई, पानी से बढ़ती हुई, क्या भरे हुए घडे के समान हो जायगी ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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