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________________ २३४ भगवती सूत्र-श. १ उ. ५ स्थिति-स्थान . त्रिक संयोगी १२ भंग . १. क्रोधी बहुत, मानी एक, मायी एक, २, क्रोधी बहुत, मानी एक, मायी बहुत, ३. क्रोधी बहुत मानी बहुत, मायी एक, ४. क्रोधी बहुत, मानी बहुत, मायी बहुत, ५. क्रोधी बहुत, मानी एक, लोभी एक, ६ क्रोधी बहुत, मानी एक, लोभी बहुत, ७. क्रोधी बहुत, मानी बहुत, लोभी एक, ८ क्रोधी. बहुत, मानी बहुत, लोभी बहुत, ९. क्रोधी बहुत, मायी एक, लोभी एक, १०. क्रोधी बहुत, मायी एक, लोभी बहुत, ११. क्रोधी बहुत, मायी बहुत, लोभी एक, १२. क्रोधी बहुत, मायी बहुत, लोभी बहुत । .... ___चतुःसंयोगी ८ भंग १. क्रोधी बहुत, मानी एक, मायी एक, लोभी एक, २. क्रोधी बहुत, मानी एक, मायी एक, लोभी बहुत, ३. क्रोधी बहुत, मानी एक, मायी बहुत, लोमी एक, ४. क्रोधी बहुत, मानी एक, मायी बहुत, लोभी बहुत, ५. क्रोधी बहुत, मानी बहुत, मायी एक, लोभी एक, ६, क्रोधी बहुत, मानी बहुत, मायी एक, लोभी बहुत, ७. क्रोधी बहुत, मानी बहुत, मायी बहुत, लोभी एक, ८. क्रोधी बहुन, मानी बहुत, मायी बहुत, लोभी बहुत । प्रत्येक नरक में जघन्य स्थिति वाले नैरयिक सदा पाये जाते हैं और उनमें क्रोधोपयुक्त नैरयिक बहुत ही होते हैं । अतः इन में ये उपर्युक्त २७. भंग पाये जाते हैं। इन सत्ताईस ही भंगों में 'क्रोध' बहुवचनान्त ही रहेगा। . एक समय अधिक जघन्य स्थिति से लेकर संख्यात समय अधिक जघन्य स्थितिवाले नरयिकों में पूर्वोक्त अस्सी भंग होते हैं । इस स्थिति वाले नैरयिक कभी मिलते हैं और कभी नहीं मिलते हैं । अतः उनमें क्रोधादि उपयुक्त नैरयिकों की संख्या एक और अनेक होती है। असंख्यात समय अधिक की स्थिति से लेकर उत्कृष्ट स्थिति वाले नैरयिकों में तो पूर्वोक्त २७ भंग पाये जाते हैं । इस स्थिति वाले नैरयिक सदा काल पाये जाते हैं और वे बहुत होते हैं। इसी प्रकार नरक और देवों के जिन जिन स्थानों में सत्ता की अपेक्षा विरह न हो वहाँ २७ भंग और जहाँ विरह हो वहाँ अस्सी भंग होते हैं । औदारिक के दस दण्डकों में जो बोल निरन्तर मिलते हैं, वहाँ अभंग और जो निरन्तर नहीं मिलते हैं उनमें अस्सी भंग होते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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