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________________ भगवती सूत्र-श. १ उ. ५ स्थिति-स्थान . २२७ लाख, पचास हजार, चालीस हजार विमानावास जानना चाहिए । सहस्रार कल्प में छह हजार विमानावारू हैं। आणत और प्राणत कल्प में चार सौ, आरण और अच्युत में तीन सौ, इस तरह चारों में मिल कर सात सौ विमान हैं। अधस्तन (नीचले) ग्रेवेयक त्रिक में एक सौ ग्यारह, मध्यतन (बीच के) अवेयक त्रिक में एक सौ सात और उपरितन (ऊपर के) अवेयक त्रिक में एक सौ विमानावास हैं। अनुत्तर विमान पाँच ही हैं। विवेचन-पृथ्वीकाय, अप्काय; तेउकाय, वायुकायं और वनस्पतिकाय ये पांच स्थावर जीव हैं । इनके असंख्यात लाख, आवास (रहने के स्थान) कहे गये हैं। इसी प्रकार बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय और मनुष्यों के भी असंख्य लाख आवास है । रत्नप्रभा पृथ्वी की मोटाई की ऊपर की ठीकरी में वाणन्यन्तर देवों के असंख्य लाख निवास स्थान है। ऊपर चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, तारा-ये पाँच जाति के ज्योतिषी देव हैं । इनके भी असंख्य लाख विमानावास हैं। ज्योतिषी चक्र के ऊपर 'सौधर्म' नामक पहला देवलोक है। उसमें बत्तीस लाख विमान है । दूसरे ईशान देवलोक में अट्ठाईस लाख विमान हैं। तीसरे सनत्कुमार देवलोक में बारह लाख, चौथे माहेन्द्र देवलोक में आठ लाख, पाँचवें ब्रह्म देवलोक में चार लाख, छठे लान्तक देवलोक में पचास हजार, सातवें शुक्र देवलोक में चालीस हजार, आठवें सहस्रार देवलोक में छह हजार, नौवें आणत देवलोक में और दसवें प्राणत देवलोक में चार सौ, ग्यारहवें आरण देवलोक में और बारहवें अच्युत देवलोक में तीन सौ विमान हैं। इनके ऊपर नौ ग्रेवेयक विमान है। उनके तीन त्रिक (तीन तीन के तीन विभाग) हैं। पहले त्रिक में एक सौ ग्यारह, दूसरे त्रिक में एक सौ सात और तीसरे त्रिक में एक सौ विमान हैं। इन तीन त्रिकों के नाम क्रमशः इस प्रकार हैं-अधस्तन, मध्यतन और उपरितन । इनके ऊपर अनुत्तर विमान हैं, वे पांच हैं । इस प्रकार सब 'मिला कर चौरासी लाख, सत्तानवें हजार, तेईस विमान हैं । स्थिति-स्थान संगहोः-पुढवी द्विति-ओगाहण-सरीर-संघयणमेव संठाणे, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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