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________________ . २२६ . ___ भगवती सूत्र-श. १ उ. ५ पृथ्वीकायादि के आवास १६७ उत्तर-गोयमा ! असंखेजा पुढविक्काइयावाससयसहस्सा पण्णत्ता, जाव असंखिजा जोइसियविमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता । . १६८ प्रश्न सोहम्मे णं भंते ! कप्पे केवइया विमाणावाससयसहस्सा पण्णता ? १६८ उत्तर-गोयमा ! बत्तीसं विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता एवं: बत्तीस-ट्ठावीसा बारस-अट्ठ-चउरो सयसहस्सा, पण्ण-चत्तालीसा छ्च सहस्सा सहस्सारे । आणय-पाणयकप्पे चत्तारि सयाऽऽरण-च्चुए तिष्णि, सत्त विमाणसयाई चउसु वि एएसु कप्पेसु । एकारसुत्तरं हेट्ठिमेसु सत्तुत्तरं संयं च मज्झमए, सयमेगं उवरिमए पंचेव अणुत्तरविमाणाः । विशेष शब्दों के अर्थ-केवइया-कितने । भावार्थ-१६७ प्रश्नहे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों के कितने लाख आवास कहे गये हैं? १६७ उत्तर-हे गौतम ! पृथ्वीकायिक जीवों क असंख्यात लाख आवास कहे गये हैं और इसी प्रकार यावत् ज्योतिष्क देवों के असंख्यात लाख विमानावास कहे गये हैं। १६८ प्रश्न-हे भगवन् ! सौधर्मकल्प में कितने लाख विमानावास कहे गये हैं ? १६८ उत्तर-हे गौतम ! वहाँ बत्तीस लाख विमानावास कहे गये हैं। . इस प्रकार-क्रमशः बत्तीस लाख, अट्ठाईस लाख, बारह लाख, आठ लाख, चार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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