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भगवती सूत्र-श. १ उ. ५ पृथ्वीकायादि के आवास
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दक्षिण दिशा में
उत्तर दिशा में ८ विद्युत्कुमारों के ४० लाख ३६ लाख ९ स्तनितकुमारों के ४० लाख
३६ लाख १० अग्निकुमारों के ४० लाख ३६ लाख
४०६००००० ३६६००००० - कुल ७७२००००० भवन है ।
मूल में जो 'छण्हं जुयलयाणं' शब्द दिया है, इसका आशय यह है कि 'द्वीपकुमारसे लेकर अग्निकुमार' तक छह भवनपति देवों के युगल अर्थात् उत्तर दिशा और दक्षिण दिशा दोनों के छहत्तर छहत्तर लाख आवास हैं ।
. उत्तर दिशा के और दक्षिण दिशा के आवासों की संख्या बतलाने के लिए टीकाकार ने दो गाथाएँ दी हैं । यथा
- चउतीसा चउचत्ता अद्रुतीसं च सयसहस्साओ।
पण्णा चत्तालीसा दाहिणओ हुंति भवणाई ।। .. अर्थात्-दक्षिण दिशा के असुरकुमारों के ३४ लाख, नागकुमारों के ४४ लाख, सुवर्णकुमारों के ३८ लाख और वायुकुमारों के ५० लाख तथा शष छह द्वीपकुमार आदि प्रत्येक के चालीस चालीस लाख भवन हैं।
तीसा चत्तालीसा चोत्तीसं चेव सयसहस्साइं।
छायाला छत्तीसा उत्तरओ होंति भवणाई ॥ - अर्थ-उत्तर दिशा के असुरकुमारों के ३० लाख, नागकुमारों के ४० लाख, सुवर्णकुमारों के ३४ लाख, कायुकुमारों के ४६ लाख और शेष द्वीपकुमारादि छह के प्रत्येक के छत्तीस लाख, छत्तीस लाख भवन हैं।
- रहने के स्थान को 'आवास' कहते हैं । भवनपति देवों के आवासों को 'भवन' कहते हैं और वैमानिक देवों के आवासों को 'विमान' कहते हैं ।
पृथ्वीकायादि के आवास
१६७ प्रश्न केवइया णं भंते ! पुढविक्काइयावाससयसहस्सा पण्णता ?
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