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________________ भगवती सूत्र-दा. १ उ ४ कर्म प्रकृतियाँ शतक १ उद्देशक ४ कर्म प्रकृतियाँ १४६ प्रश्न-कइ णं भंते ! कम्मप्पगडीओ पण्णताओ ? १४६ उत्तर-गोयमा ! अट्ठ कम्मप्पगडीओ पण्णत्ताओ, कम्मप्पगडीए पढमो उद्देसो नेयम्वो जाव-अणुभागो सम्मत्तो । गाहाः____कह पयडी ? कह बंधइ ? काहिं च ठाणेहिं बंधइ पयडी । कइ वेदेह य पयडी ? अणुभागो कइविहो कस्स ? विशष शब्दों के अर्थ-कम्मप्पगडीओ-कर्मप्रकृतियाँ, कइ-कितनी, कह-कसे । भावार्थ-१४६ प्रश्न-हे भगवन् ! कर्म प्रकृतियाँ कितनी कही गई हैं ? . १४६ उत्तर-हे गौतम ! कर्म प्रकृतियाँ आठ कही गई हैं। यहाँ पर पन्नवणा सूत्र के कर्म प्रकृति नामक तेईसवें पद का पहला उद्देशक यावत् अनुभाग तक कहना चाहिए। - गाथा का अर्थ-१ कितनी कर्म प्रकृतियाँ हैं ? २ जीव किस प्रकार बंध करता है ? ३ कितने स्थानों से कर्म प्रकृतियों को बांधता है ? ४ कितनी प्रकृतियों को बेदता है ? ५ किस प्रकृति का कितने प्रकार का अनुभाग (रस) . विवेचन-कर्मों की उदीरणा और वेदन के सम्बन्ध में तीसरे उद्देशक में कहा गया है । इस उद्देशक में कर्मों के भेद आदि बतलाये जाते हैं गौतम स्वामी ने कर्म प्रकृतियों की संख्या के सम्बन्ध में प्रश्न किया है । उत्तर में भगवान् ने फरमाया कि-कर्म प्रकृतियाँ आठ हैं। . यहां पर पन्नवणा सूत्र के कर्मप्रकृति नामक तेईसवें पद का पहला उद्देशक कहना चाहिए । वहाँ पूछा है कि-- Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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