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________________ १७० वेदते हैं। भगवती सूत्र - श. १ उ. ३ कांक्षा- मोहनीय वेदन ११७ उत्तर- हाँ, गौतम ! वेदन करते हैं । ११८ प्रश्न - हे भगवन् ! जीव कांक्षामोहनीय कर्म को किस प्रकार ११८ उत्तर - हे गौतम! अमुक अमुक कारणों से जीव शंकायुक्त, काँक्षायुक्त विचिकित्सायुक्त भेदसमापन और कलुषसमापन्न होकर कांक्षामोहनीय कर्म को वेदते हैं । ११९ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या वही सत्य और निःशंक है जो जिन भगवान् ने निरूपण किया है ? ११९ उत्तर - हाँ, गौतम ! बही सत्य और निःशंक है जो जिन भगवान् ने निरूपण किया है । १२० प्रश्न - हे भगवन् ! वही सत्य और निःशंक है जो जिन भगवान् ने निरूपण किया है, इस प्रकार मन में निश्चय करता हुआ, इसी प्रकार आचरण करता हुआ, रहता हुआ, संवर करता हुआ, जीव आज्ञा का आराधक होता है ? १२० उत्तर - हाँ, गौतम ! इस प्रकार मन में निश्चय करता हुआ बाबत् आज्ञा का आराधक होता है । विवेचन - गौतम स्वामी ने प्रश्न किया कि --हे भगवन् ! क्या जीव कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन करता है ? इसके उत्तर में भगवान् ने फरमाया कि हाँ, गौतम ! करता है । यहाँ पर शंका की जाती है कि यह प्रश्न पहले भी किया था, फिर दूसरी बार बही प्रश्न किस आशय से किया गया है ? इसका समाधान यह है कि-वेदन के कारणों को बतलाने के लिए यह प्रश्न वापिस दोहराया गया है । यथा Jain Education International पुव्वभणियं पि पच्छा जं भव्णइ तत्थ कारणं अस्थि । डिसेहो य अण्णा - हेउविसेसोवलंभो ति ॥ अर्थ - एक बार कही हुई बात को फिर कहने के कारण ये हैं-प्रतिषेध, अनुज्ञा और एक प्रकार के हेतु का कथन । तात्पर्य यह है कि पहले कही हुई बात का प्रतिषेध करने के For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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