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________________ भगवती सूत्र - श. १ उ. ३ कांक्षा- मोहनीय वेदन कांक्षा- मोहनीय वेदन ११७ प्रश्न - जीवा णं भंते ! कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेंति ? ११७ उत्तर - हंता. गोयमा ! वेदेति । ११८ प्रश्न - कह णं भंते! जीवा कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेति ? ११८ उत्तर - गोयमा ! तेहिं तेहिं कारणेहिं संकिया, कंखिया वितिगिंछिया, भेदसमावन्ना, कलुससमावन्ना, एवं खलु जीवा कंखामोहणिज्जं कम्मं वेति । ११९ प्रश्न - से पूर्ण भंते! तमेव सच्च णीसंकं जं जिणेहिं १६९ पवेsयं । ११९ उत्तर - हंता, गोयमा ! तमेव सच्चं णीसंकं जं जिणेहिं पवेड़यं । १२० प्रश्न - से णूणं भंते ! एवं मणं धारेमाणे, एवं पकरेमाणे एवं चिट्ठेमाणे, एवं संवरेमाणे आणाए आराहए भवइ ?. १२० उत्तर - हंता, गोयमा ! एवं मणं धारेमाणे जाव भवइ । Jain Education International विशेष शब्दों के अर्थ – वेदेति – वेदते हैं, कहं – किस तरह से, संकिया - शङ्कित, कंखियाकांक्षित, वितिगिछिया - विचिकित्सा वाले, भेयसभावण्णा - भेद समापन्न - भेद को प्राप्त हुए, सच्चं - सत्य, णीसंकं - निःशंक । भावार्थ - ११७ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या जीव कांक्षाभोहनीय कर्म का वेदन करते हैं ? For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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