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१६.
भगवती सूत्र-श. १ उ. २ असंज्ञी जीवों का आयुष्य
नेरइय असन्नीआउए असंखेजगुणे ।
सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति।
॥ बिइओ उद्देसो सम्मत्तो॥ विशेष शब्दों के अर्थ-असग्णि आउए-असंज्ञी का आयुष्य, पकरे-करता है, अंतोमुहूतं--अन्तर्मुहूर्त ।
__ भावार्थ-१०९ प्रश्न-हे भगवन् ! असंजी का आयुष्य कितने प्रकार का कहा गया है ?
१०९ उत्तर-हे गौतम ! असंज्ञी का आयुष्य चार प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है-नरयिक असंज्ञी आयुष्य, तिर्यञ्च असंज्ञी आयुष्य, मनुष्य असंज्ञी आयुष्य और देव असंज्ञी आयुष्य ।
११० प्रश्न-हे भगवन् ! क्या असंज्ञी जीव नरक की आयु उपार्जन करता है ? तिर्यञ्च की, मनुष्य को और देव की आयु उपार्जन करता है ? .
११० उत्तर-हे गौतम ! असंज्ञी जीव नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव की आयु भी उपार्जन करता है। नरक की आयु उपार्जन करता हुआ असंज्ञी जीव जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग को उपार्जन करता है। तिर्यञ्च की आयु उपार्जन करता हुआ असंही जीव जघन्य अन्तर्महत की और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग को उपार्जन करता है। मनुष्य की आयु भी इतनी ही उपार्जन करता है और देव की आयु, नरक की आयु के समान उपार्जन करता है।
१११ प्रश्न-हे भगवन् ! नरक असंज्ञी आयुष्य, तिर्यञ्च असंज्ञी आयुष्य, मनुष्य असंज्ञी आयुष्य और देव असंज्ञी आयुष्य, इनमें कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक है ?
१११ उत्तर-हे गौतम ! देव असंज्ञी आयुष्य सब से कम है । उसकी
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