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भगवतीसूत्र-शः १ उ. २ नैरयिकों के समवेदना आदि
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रहा । इन कामभोगों के जाल में फंस जाने के कारण ही मैंने अरिहन्त भगवान् के धर्म का आचरण नहीं किया। मैने नर-भव निष्फल गंवा दिया। इस प्रकार का पश्चात्ताप संज्ञिभूत नारकी को होता है, जिससे उसकी मानसिक वेदना बढ़जाती है और जिससे वह महावेदना का अनुभव करता है।
असंज्ञिभूत का अर्थ है-मिथ्यादृष्टि । उसे यह ज्ञान ही नहीं है कि-हम अपने पूर्वकृत कर्मों का फल भोग रहे हैं । अतएव उन्हें पश्चात्ताप नहीं होता और न मानसिक पीड़ा ही होती है । इसलिए असंज्ञिभूत नैरयिक अल्प वेदना का अनुभव करता है।
सम्यग्दृष्टि जीव सम्यक्त्व अवस्था में नरक का आयुष्य नहीं बांधता, किन्तु जिसने मिथ्यात्व अवस्था में नरक का आयु बाँध लिया हो, ऐसा जीव फिर चाहे सम्यक्त्व प्राप्त कर भी ले तो भी उसे पूर्व बद्ध नरकायु के अनुसार नरक में अवश्य जाना पड़ता है । नरक में जाने पर भी वह सम्यग्दृष्टि रह सकता है और उसे अपने कृतकर्मों पर पश्चात्ताप होता है।
तात्पर्य यह है कि नरक में सम्यग्दृष्टि महावेदना का अनुभव करता है, क्योंकि उसे पश्चात्ताप अधिक होता है । असंज्ञिभूत अर्थात् मिथ्यादृष्टि को अल्पवेदना होती है, क्योंकि स्वकृत कर्मों को न जानने से उसे पश्चाताप नहीं होता।
संज्ञिभूत और असंज्ञिभूत शब्दों के अर्थ में किसी किसी आचार्य का मत भिन्न है। उनका कहना है कि-संज्ञिभूत का अर्थ यहां संज्ञी पञ्चेन्द्रिय है अर्थात् जो जीव नरक में जाने से पहले संज्ञी पञ्चेन्द्रिय था, उसे यहाँ संज्ञिभूत कहा गया है । संज्ञी पञ्चेन्द्रिय जीव में तीव्र अशुभ परिणाम हो सकते हैं। इसलिए वह सातवीं नरक तक जा सकता है । जो जीव आगे की नरकों में जाता है उसको अधिक वेदना होती है । नरक में जाने से पहले जो जीव असंज्ञी था उसे यहाँ 'असंज्ञिभूत' कहा गया है। ऐसा जीव रत्नप्रभा के तीव्र वेदना रहित नरक स्थानों में उत्पन्न होता है । अतः उसे अल्प वेदना होती है।
. अथवा-यहाँ संज्ञिभूत का अर्थ 'पर्याप्त' और 'असंज्ञिभूत' का अर्थ 'अपर्याप्त' है। जिस नारकी ने सभी पर्याप्तियाँ पूर्ण करली हों, उसे 'पर्याप्त' कहते हैं और जिसने अभी तक उन्हें पूर्ण न किया हो उसे - 'अपर्याप्त' कहते हैं । संज्ञिभूत अर्थात् पर्याप्त को महावेदना होती है और 'असंज्ञीभूत' अर्थात् अपर्याप्त को अल्पवेदना होती है। .
संज्ञिभूत और असंज्ञिभूत शब्दों के ये सभी अर्थ अपेक्षाकृत ठीक हैं।
गौतम स्वामी ने फिर प्रश्न किया कि-हे भगवन् ! क्या सभी नारकी जीव समान क्रिया वाले हैं ? भगवान् ने फरमाया कि-नहीं, सभी नारकी जीव समान क्रिया वाले नहीं
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