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________________ भगवती सूत्र-श. उ. १ ज्ञानादि संबंधी प्रश्नोत्तर . ९३ भंते-हे भगवन् ! क्या, चरिते-चारित्र, इहमविए-इहभविक है, परमविए --- . परभविक है या, तदुभयभविए-तदुभयभविक है ? __गोयमा-हे गौतम ! चरिते-चारित्र, इहमविए-इहभविक है, जो परमविएपरभविक नहीं है और, णो तदुभयभविए-तदुभयभविक भी नहीं है, एवं-इसी प्रकार, तवे-तप और, संजमे-संयम भी जान लेना चाहिए। भावार्थ-५४ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या ज्ञान इहमविक है, परभविक है या तदुभयभविक है ? ५४ उत्तर-हे गौतम ! ज्ञान इहभाविक भी है, परभविक है और तदुभयभविक भी है। इसी तरह दर्शन भी जान लेना चाहिए। - ५५ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या चारित्र इहमविक है, परमविक है या तदुभयभविक है ?... ५५ उत्तर-हे गौतम ! चारित्र इहभविक है, किन्तु परभविक और तदुभयभविक नहीं है। इसी प्रकार तप और संयम के विषय में भी जान लेना चाहिए। - विवेचन-जो इस वर्तमान चालू भव में ही हो उसे 'इहभविक' कहते हैं । जो वर्तमान चालू भव के बाद होने वाले दूसरे भव में साथ रहे उसे 'पारभविक' कहते हैं। जो इस भव में रहे और परभव में तथा परतर भव में अर्थात् तीसरे चौथे भव में भी माथ रहे उसे 'तदुभयभविक' कहते हैं। ज्ञान और दर्शन (सम्यक्त्व) ये दोनों इहभविक भी हैं, पारभविक भी हैं और तदुभयभविक भी हैं । - चारित्र इहभविक ही है किन्तु पारभविक और तदुभयभविक नहीं है, क्योंकि इस भव में ग्रहण किया हुआ चारित्र यावज्जीवन ही रहता है । देशविरति चारित्र और सर्व विरति चारित्र वाले जीवों की उत्पत्ति देवलोक में ही होती है और देवलोक में विरति का सर्वथा अभाव है । अतएव चारित्र का सर्वथा अभाव है । सर्वविरति चारित्र का पालनकर, सर्वथा कर्मों का क्षय कर जो जीव मोक्ष में जाते हैं, तो मोक्ष में भी चारित्र नहीं होता है। कर्मों का क्षय करने के लिए चारित्र अंगीकार किया जाता है । मोक्ष में कर्म नहीं हैं, कर्मों का सर्वथा क्षय होने से ही मोक्ष होता है । इसलिए मोक्ष में चारित्र का कुछ मी प्रयोजन नहीं है । चारित्र धारण करते समय जीवन पर्यन्त की प्रतिज्ञा ली जाती है, वह इस जीवन के समाप्त होने पर पूर्ण हो जाती है और मोक्ष में नया चारित्र ग्रहण नहीं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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