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भगवती सूत्र-श. १ उ. १ ज्ञानादि संबंधी प्रश्नोत्तर
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ज्ञानादि सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
.५४ प्रश्न-इहभविए भंते ! णाणे, परभविए णाणे, तदुभयभविए णाणे?
५४ उत्तर-गोयमा ! इहभविए वि णाणे, परभविए वि णाणे, तदुभयभविए वि णाणे । दंसणं पि एवमेव ।
५५ प्रश्न-इहभविए भंते ! चरित्ते, परभविए चरित्ते, तदुभयभविए चरिते ? .
५५ उत्तर-गोयमा ! इहभविए चरित्ते, णो परभविए चरिते, । णे तदुभयभविए चरित्ते । एवं तवे, संजमे ।
__शब्दार्थ-मंते-हे भगवन् ! क्या, णाणे-ज्ञान, इहमविए-इहभविक है, परभविएपरभविक है ? या, तदुभयभविए-तदुभयभविक है ?
___गोयमा-हे गौतम ! गाणे-ज्ञान, इहभविए वि-इहभविक भी है, परमविए विपरभविक भी है और, तदुभयमविए वि-तदुभयभविक भी है, एवमेव-इसी तरह, दंसणं पि -दर्शन भी जान लेना चाहिए।
पश्चात् ये कृष्णादि तीन अशुभ लेश्याएं आ सकती है। जैसा कि भद्रबाहुस्वामी विरचित आवश्यक नियुक्ति की उपोद्घात नियुक्ति में कहा है
"पुव्वपडिवण्णओ पुण अण्णयरीए उ लेस्साए" अर्थ-चारित्र प्राप्ति के पश्चात् साधु में कोई भी लेश्या हो सकती है। जैसे कि-मनःपर्ययज्ञान अप्रमत्त संयत को ही प्राप्त होता है, किन्तु मनःपर्ययज्ञान प्राप्त हो जाने के पश्चात् वह प्रमत्तसंयत में भी रह सकता है । भगवती श. ८ उ. २ तथा पनवणा पद १७ उ. ३ में कृष्णादि पांच लेश्याओं में चार मान तक बतलाये हैं । अतः इससे भी यह स्पष्ट होता है कि जब कृष्णादि अशुभ लेश्या में मनःपर्ययज्ञान है, तो वह भाव लेश्या ही हो सकती है, क्योंकि द्रव्य लेश्या तो पुद्गल है। अतः चारित्र प्राप्ति के बाद इन संपत जीवों में कृष्णादि लेश्या भी कभी हो सकती है।
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