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________________ ९४ भगवती सूत्र-श. १ उ. १ असंवृत अनगार . . किया जाता है । इस प्रकार मोक्ष में भी चारित्र नहीं है । इसलिए कहा गया है 'सिद्ध णो चरित्ती, गो अचरित्ती, गो चरित्ताचरित्ती' ___अर्थ-सिद्ध जीव न चारित्री हैं, न अचारित्री हैं और न चारित्राचारित्री हैं। मोक्ष में अनुष्ठान रूप चारित्र का अभाव . होने से वे चारित्री नहीं हैं और अविरति का अभाव होने से अचारित्री तथा चारित्राचारित्री भी नहीं हैं। . जिस सम्यक् चारित्र का वर्णन यहाँ चल रहा है, उसके दो भेद है- तप और संयम । जिस प्रकार चारित्र का कथन किया गया है, वैसा ही तप और संयम के विषय में भी जान लेना चाहिए। असंवृत अनगार ५६ प्रश्न-असंवुडे णं भंते ! अणगारे किं सिज्झइ बुज्झइ. मुच्चइ परिणिव्वाइ सव्वदुक्खाणं अंतं करेइ ? ५६ उत्तर-गोयमा ! णो इणटे समढे। . ५७ प्रश्न-से केणटेणं जाव णो अंतं करेइ ? ५७ उत्तर-गोयमा ! असंवुडे अणगारे आउयवजाओ सत्तकम्मपगडीओ सिढिलबंधणबद्धाओ धणियबंधणबद्धाओ पकरेइ हस्सकालठिड्याओ दीहकालठिड्याओ पकरेइ । मंदाणुभावाओ तिव्वाणुभावाओ पकरेइ, अप्पपएसगाओबहुप्पएसगाओ पकरेइ, आउयं च णं कम्मं सिय बंधइ सिय णो बंधइ, अस्सायावेयणिजं च णं कम्मं भुजो भुजो उवचिणइ, अणाइयं च णं अणवयग्गं दीहमळू चाउरंतसंसारकतार अणुपरियट्टइ, से तेणटेणं गोयमा ! असंवुडे अणगारे णो सिन्झइ जाव णो अंतं करेइ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004086
Book TitleBhagvati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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