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________________ तीर्थकरों में- कल्पित निक्षेप. S ( ४७ ) न होगा । कूज्जेमें तो जो कोइ -भरण क्रिया आदि - - विशेष गुण - है सोई' भावरूप है. ? ॥ , इति ढूंढनाजीके मनः कल्पित, आठ विकल्पकी, सामन्यपणे समीक्षा. || ढूंढनीजीने तीर्थकरोंमें चार-निक्षेपकी, जूठी कल्पना किंई है, उनका विचार दिखावते है | ढूंढनी - पृष्ट १४ ओ ८ से - नाभिराजा कुलचंद नंदन इत्यादि, सद्गुण सहित, ऋषभदेव, सो नाम ऋषभदेव, कार्य साधक है. इत्यादि ॥ पृष्ट १५ ओ. ३ सें- किसी सामान्य पुरुषका नाम, स्थंभादिका नाम, ऋषभदेव, रख दिया सो, -नाम निक्षेप, निरर्थक है | समक्षा - पाठक वर्ग ! ढूंढनी-अपणा किया हुवा लक्षणमें, आकार और गुण रहित, नाम सो ' नाम निक्षेप लिखती है। तो क्या पुरुषमें - कुछ आकार नही है ? और क्या मनुष्यपणेका, गुणभी, कुछ नही होगा ? ॥ और तैसेंही, स्थंभामें-- आकार, और धारण करणरूप गुण क्या नही हैं. ? । जो आकार और गुण विनाका ' नाम निक्षेपमें, दिखाती है । हे सुमतिनी ! देख - हमारा लिखा हुवा लक्षणसूत्रमें तीन प्रकारसे, नाम निक्षेप करना, दिखा या है। सो तो वर्णसमुदायमात्रपणे से संकेत है, जिसने - जिस वस्तु १ पुरुष - स्थंभायें - और तीर्थकर में - ऋषभ और देव यहदोनो शब्दोका, सर्वजगे एक सरीषा संयोग होनेसें ' नाम निक्षेप' का फरक नही है, मात्र बस्तुओंका ही फरक से ढूंढनी, भ्रम हुवा है || Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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