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'भाव, कुतर्कका, विचार.
पृष्ट १४ ओ ३ से मिट्टी के कूज्जेमें, मिशरी हुई सो 'भाव निक्षेप' इत्यादि ।
समीक्षा - पाठक वर्ग ! मिशरी में मिठापन है सो तो 'भाव निक्षेप' है । परंतु ' कूज्जा' जो मिट्टीका है, उसमें, मिठापणेका ' भाव क्या है ! जो ढूंढनी मिशरी वस्तुका भाव निक्षेप मिट्टी के कूज्जेमें करती है ? क्योंकि कूज्जा जो है सो तो, एक वस्तु ही अलग है, उनके तो 'चार निक्षेप' अलग ही करने पडेंगे । और कूज्जा जो मिट्टोका है सौ क्या खाया जायगा ? जो मिट्टी के कूज्जेमें, मिशरीका भाव निक्षेप, करती है ? और अपणा किया लक्षणसे, मिशरी वस्तुका 'भाव' मिट्टी के कूज्जेमें, कैसें मिलावेगी ? क्योंकि वर्तमान में गुण सहित, भाव निक्षेप, कहती है, । तो मिट्टी के कूज्जेमें; वर्त्तमानमें मिशरीपणेका भाव क्या है ? सो दिखा देवें ।।
ढूंढनी - " इदं मधुकुंभं आसी " उहां तो द्रव्य 'निक्षेप ' मानाथा, तो इहां मिशरी युक्त कूज्जेमें 'भाव निक्षेप' क्यौं नही मानते हो ? क्यों कि 'निक्षेप नाम, डालना. "
समीक्षा - है सुमतिनी ? उहां तो-जो मधु भरणरूप क्रिया है, उस क्रिया मात्रकोही, वस्तुरूप मानोथी, सो वर्त्तमानमें मधु भ रणरूप क्रिया नही होनेसें, मात्र भरण क्रियारूप वस्तुका, आरोप मान के ' इंदं मधुकुंभ आसी' ऐसा दृष्टांत दियाथा। जैसें आवश्यकके निक्षेपमें - ज्ञान वस्तुका उपयोग विनाका साधुको 'द्रव्य निक्षेप' रूपसे मानाथा, तैसें इहांपर समजनेका है परंतु कुंभको- द्रव्य निक्षेपपणे, नही मानाथा । क्यों कि कुंभका, द्रव्य निक्षेप करणा पडेगा जब तो, मिट्टीही करणा पडेगा । इस वास्ते भाव निक्षेपमें मिशरी है, सोई हैं । कुछ मिट्टी के कूज्जेमे - मिशरीका भाव निक्षेप,
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