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द्रव्य में-- कुतर्कका विचार.
॥ इति स्थापनायें- कुतर्कका विचार ||
|| अब द्रव्य निक्षेपमें- कुतर्कका विचार || ढूंढनी - पृष्ट १३ ओ ६ से, द्रव्य, खांड, आदि, जिससे मिशरी बने, सार्थक है, ॥ ओ ८ से, -द्रव्य निक्षेप, मिशरी ढालनेके, मिट्टी के कूज्जे, इत्यादि. |
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समीक्षा - पाठक वर्ग ! पूर्व कालमें, किंवा अपर कालमें, जो कार्य कारण रूप -- एक वस्तु है, उस कारण रूप वस्तुमें - कार्यका आरोप करणा, उसका नाम द्रव्य निक्षेप है । सो द्रव्य, और द्रव्य निक्षेप, अलग कैसे मानती है ? | खांड है सो क्या, वर्त्तमानमें मिशरी रूप है ? जो एकपणा कर देती है ? मात्र आरोप करके मिशरी मानने की है ? देखो - लक्षण - ओर सूत्रपाठार्थ। ढूंढनीजीकी मति तो भ्रम चक्र में गिरी हुई है। और ढूंढनीजी कहती है के, द्रव्य निक्षेपमिशरी ढालने के कूज्जे । और आपने लक्षणमें लिखती है कि-वस्तुका वर्तमान गुण रहित, अतीत अनागत गुण सहित, सो द्रव्य निक्षेप, । तो अब मट्टीके कूज्ज़ेमें- अतीत, अनागतमें, मिशरपिणेका गुण, ढूंढनीजीने क्या देख्या ? जो द्रव्य निक्षेप करके दिखाती है ? और क्या मिट्टी के कूज्जेको, अतीत अनागत कालमें, मिशरी करके खाये जायगें ? जो मिशरी वस्तुका ' द्रव्य निक्षेप' कूज्जेमें करती है ! हे सुमतिनि ? विचार कर ? । तेरी जूठी कल्पना कहांतक चलेगी. ? ॥ इति द्रव्यमें- कुतर्कका विचार ||
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|| अब भावनिक्षेपमें कुतर्कका विचार ||
ढूंढनी - पृष्ट १३ ओ १५ से भाव, मिशरीका मिठापण, ॥
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