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स्थापना में, कुतर्कका विचार.
(४१)
ढूंढनी - सत्यार्थ पृष्ट ८ ओ १० - काष्ट पाषाणादिकी मूर्ति, कार्य साधक नही || और पृष्ट ९ ओ ३ से दोनो निक्षेप अवस्तु है ।। ओ १२ से इन दोनो निक्षेपोंको, सात नयोंमेंसे, ३ सत्य नय वालने, अवस्तु माना है । क्योंकि, अनुयोग द्वार सूत्रमें - द्रव्य, और भाव निक्षेपो परतो, सात २ नय-उतारी है, परंतु नाम, और स्थापना पै, नही उतारी है इत्यर्थः
समीक्षा - पाठकवर्ग, ? लक्षणसें जो तीन प्रकारका नाम निक्षेप किया गया, सो तो, अपनी अपनी वस्तुपणाका, भाव-प्रकट करनेवाला ही, हो चुका है | और स्थापनाभी - जिस वस्तु के अभिमायसें, स्थापित किई जावे, उस वस्तुका भावको क्या नही जनाती है ? जो ढूंढनी निरर्थकपणा, और अवस्तुपणा, कहती है ?||और अपणा किया हुवा लक्षणमें- आकार, और नाम, सहितपणा लि. खती है, तो अब स्थापनामें अवस्तुपणा कैसें होगा ? जो वस्तुपणा न होगा तो आकारपणाभी न होगा | और सूत्रकारने - पोथी पै लिखा आदि, अथवा आवश्यककी क्रियायुक्त साधुकी मूर्ति, कही है, सो क्या विचारवाले पुरुषको आवश्यककी क्रियाका 'भाव' प्रगट करनेवाली, स्थापना नही है ? जो ढूंढनी दोनो निक्षेपको, निरर्थक, कहती है । ? और लिखती है कि सूत्रमें, द्रव्य, और भाव निक्षेपों पर तो सात २ नय उतारी हैं, परंतु नाम, और स्थापना पैं, नहीं उतारी है इत्यर्थः, और उपर लिखती है कि इन दोनों नि क्षेपोंको, सातनयोंमें, ३ सत्यनयवालोंने, अवस्तु माना है । पाठकवर्ग ! इस ढूंढनीने कुछभी विचार है ? कि में क्या बकवाद करती हूं, जब दोनों प्रथमके निक्षेपोंपर, सातनय उतारीही नहीं है, तब सातनयोंमेंसे, ३ सत्यनयवालोंने, अवस्तु माना, वैसा कहांसे लिखती हैं? अरे ढूंढनी ! यह विचारही कुछ और है, तेरे बडे
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