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________________ निक्षेप चार । ढूंढनीका-आठ.. वास्ते ढूंढनीजीने जो जूठी कल्पना किई है, सो तो सूत्रकारसें, और कक्षणकारसेभी, तदन विपरीत होनेसे निरर्थकही है... - इति चतुर्थ भाव निक्षेप' विशेष समीक्षा समाप्ता ।। अब सिद्धांतकारोसें, निरपेक्ष होके, ढूंढनी, आठ, विकल्प, करती है. ढूंढनी-सत्यार्थ पृष्ट ११ ओ. ९ सें-अथ पदार्थका नाम १ । और नाम निक्षेप २ । स्थापना ३ । और स्थापना निक्षेप ४ । द्रव्य ५ । और द्रव्य निक्षेप ६ । भाव ७ । और भाव निक्षेप ८। स्वरूप दृष्टांत सहित लिखते है इत्यादि. . समीक्षा-हे ढुंढनी ? तीर्थकरोका, और साथमें गणधरोंकामी, अनादर करके यह ' आठ विकल्प ' कल्पित लिखनेके वख्त तेरी बुद्धि कैसे चली ? गणधर महाराजाओने, जो चार चार निक्षेप, वस्तुका किया है, उनके पूर्वापरका विचार तूं देखतीही नही है ? । हम इतनाही कहते है कि-जो किसीभी जैन सिद्धांतमेसें तेरे किये हुये आठ विकल्पका पाठ दिखावेगी, तबही तेरी गति होगी ? नहितर गति न होगी। आजतक तो तेरे ढूंढको परोक्षपणे गणधरोंका, और प्रत्यक्षपणे महान् महान् आचार्योका--अनादर करनेसें अवि. वेकका क्लेश पावतेरहें, अब प्रत्यक्षपणे गणधरोके वचनका--अनादर करनेसे, न जाने तुमेरी क्या दशा बनेगी । वाचकवर्गको भी ढूंढनीने कियेली, अनादरपणेकी खातरी हो-जायगी. ॥ ॥ अब नाममें-कुतर्कका विचार ॥ ढूंढनी-सत्यार्थ पृष्ट ११-१२ में-जो 'द्रव्य ' मिशरीनाम है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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