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________________ (४०) भावनिक्षेपमें, विशेष. रूपही है । क्यों कि-सूत्रकारने तो-आगमसे, मुशिक्षित आवश्यक. क्रियाका करनेवाला उपयोग विनाके साधुमें 'द्रव्य निक्षेप' कहा है। और नो आगमसें मृतक साधुमें-पूर्वकालकी, आवश्यक क्रि. याका आरोप, और साधु होनेवालेमें-भविष्यकालकी, आवश्यक क्रियाका आरोप करके वह आगमका कारणस्वरूपमें “द्रव्य आव. श्यक' माना है, सोइ लक्षणकारनेभी दिखाया है ॥ . इति 'द्रव्य निक्षेप' विशेष समीक्षा समाप्ता ॥ ॥ अब चतुर्थ ' भाव निक्षेप ' विशेष समीक्षा ॥ ढूंढनीजी-अपणे लक्षणमें-वस्तुका-नाम, आकार, और वर्तमान गुण सहित, सो-भाव निक्षेप, लिखती है । और सूत्रार्थसेंउपयोग सहित, आवश्यकका, करणा कहा है, वैशा लिखती है। अब जो उपयोग सहित, आवश्यकका करना है सो तो-उपयोग सहित आवश्यककी क्रिया हुइ, सो-भावनिक्षेप ॥ तो अब सूत्रसेंभिन्नपणे नाम, और स्थापना निक्षेप, कहकर आई सो, इस भाव निक्षेपका विषयमानमें कैसें गूसडेगा ? अब देखो हमारा तरफ केसूत्रपाठमें । और लक्षणों ।। सूत्रपाठमें-आगमसें तो-उपयोग सहित, आवश्यक क्रियामें प्रवृत्ति कर रहा हुवा साधुमें-भाव निक्षेप । और नो आगमसे,-लोकिक, लोकोत्तर, और व्यतिरिक्त, के सबं. धवाले पुरुषों जो अवश्य क्रिया प्रवृत्ति कर रहे है, उस पुरुषोंमे 'भाव निक्षेप' माना है । और शास्त्रकारके लक्षणसें देखो कि-जे जे नामवाली वस्तुमें जो जो क्रियाओं सिद्ध है, उसी क्रिया व. स्तुका वर्तन होना, सो-'भावनिक्षेपका' लक्षण कहा है । सो, सूत्रकारका, और लक्षणकारका, एकही अभिप्राय मिलता है। इस Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004084
Book TitleDhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Dagdusa Patni
PublisherRatanchand Dagdusa Patni
Publication Year1909
Total Pages448
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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